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________________ ‘अंक १] दिगंबर जैन स लोकोए एमने सोनानो चांद आप्यो हतो. जैनधर्मनो अभ्यासी कोई वीर युरोपीअन (ए प्रसंगे तथा बीजा अनेक प्रसंगोए एमणे नर होय तो ते आज इटालीअन विद्वान छे, आपेलां व्याख्यानो 'Jain Philosophy' के जेओ हाल कलकत्तामा रोयल एशीयाटीक • नामे पुस्तकमां प्रकट थयां छे). वळी एओ सोसायटी ऑफ बेंगाल (Royal Asiatic त्यां; 'गांधी फिलोसोफिकल सोसायटी' स्था- Society of Bengal) तरफथी मारवाडी पीने इंग्लांड गया, ज्यां पण घणां भाषणो भाषाना ग्रंथोनुं संशोधन अने इंग्लीश आप्यां. मुंबाई आव्या पछी १८९५मां ट्रान्सलेशन (अनुवाद) संपादन करवाने मुंबाईमां जैनतत्वज्ञाननो विशेष अभ्यास निमायला छे अने हाल रजपुताना प्रांतमां को अने मुंबाईमां घणां जाहेरभाषणो भ्रमण करी रहेला छे. आ विद्वान नर आप्यां अने आमंत्रण आववाथी फरी अमे- साथे अमो एक वर्ष थयां परीचयमां आव्या रिका १८९६मां उपड्या अने अमेरिका छाए त्या छीए त्यारथी एओ अमारा हिन्दी के गुजराती भाषानां पत्रो सारी रीते वांचीतेम इंग्लांडमां रही अनेक भाषणो जैनधर्म समजी शके छे, तेम 'दिगंबर जैन' शब्देसंबंधी आप्यां हतां तथा इंग्लांडमां बेरीस्ट शब्द वांची शके छे, जेथी अमो स्पष्ट रनो अभ्यास करवा मांडयो, पण वचमां जणावीए छीए के एमनुं नानी उमरमां हिंदुस्तानमां जैनो तरफथी एक अपील १०-१२ भाषाओनुं ज्ञान अति विशाळ स्टेट सेक्रेटरीने करवानी हती तेमां बोला- छे. मी. टेसीटॉरीए आटलं ज्ञान क्यारे व्याथी अत्रे आवी पाछा १८९८मां इंग्लांड अने केवी रीते मेळव्युं तथा एमनो जीवनजई त्यां ते अपील दाखल करी यशस्वी परीचय जाणवा योग्य होवाथी अमोए ते थइ पाछा फर्या हता,पण हिंदुस्तान आवतां संक्षेपमां नीचे मुजब मेळव्यो छेः- एमनी तबीयत बगडी ने बेज अठबाडीयामां मी. टेसीटॉरीनो जन्म इटालीना उडामात्र ३७ वर्षनी वये सन १९०१मां इन शहरमां सन् १८८९ ( 1889 ) मां स्वर्गवासी थई गया. जो आ वीरनर वधु थयो हतो अने नानी उमरथीज एमने जीव्या होत तो जैन समाजनी उन्नतिनां भाषाज्ञान प्राप्त करवानो विशेष शोख अगणित कार्यो अवश्य करी शकत. हतो, तेमां विशेषे करीने संस्कृत ( Sans- (३०) डॉ. एल. पी. टेसीटॉरी-इटाली krit) शीखवा- एमने उडाईननी लायब्रेरी(Dr.L.P. Tesittori-Udine, Italy) मांथी संस्कृत व्याकरणग्रंथो वांचता संस्कृत मात्र २६ वर्षेनी उमरमां १०-१२ भाषा- भाषा एमने अत्यंत पसंद पडी, जेथी ए ओ उपर अनहद काबू मेळवनार अने भाषानुं पुरुं ज्ञान संपादन करवानी एमने .
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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