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________________ अंक १] . दिगंबर जैन && २७ लक्ष जैनियोंको मिथ्या लाञ्छनसे बचाया। संचालकोंका यह कुछ पुराना ग्रुप फोटो और हरएक जाति व अन्य जाति सभाएं है, जो बाबू ज्योतिप्रसादजी देवबन्द द्वारा और पब्लिक सभाओंमें आप सभापतित्वके प्राप्त हुआ है। पं. चुन्नीलालजीका स्वर्गवास स्थान पर नियत होते रहे । न्यायमें आप हो गया है और बाबू शीतलप्रसादजी इतने दूरदर्शी हैं कि गवर्नमेन्टने आपको (लखनउ) अब तो ब्रह्मचारी हुए हैं और आनररी मजीस्ट्रेटकी पदवी प्रदान की है। जैन समाजकी बड़ी भारी सेवा कर रहे हैं। और गत वर्षमें ही आप रायबहादूरके (१९) जैन महिलारत्न श्रीमती मगनमहान पदसे सुशोभित हुए है । इसी वर्षमें .. बाईजी-बम्बई:-जैसे हमारे दानवीर सेठ आपके सुपुत्र लाला पारसदासजी (जो आपकी पास इस चित्रमें उपस्थित हैं) माणिकचंदजीको सब कोई जैनी पिछानते को कोषाध्यक्ष पदपर नियत करवाके ' हैं इसी तरह आपकी यह विदूषी पुत्री आप संसारीक कामोंसे शांति ग्रहण करनेके मगनबाईजीसे भी सारा जैनसमाज परिलिये तत्पर हैं । आप लंडन बेंक व पेपर- चित है क्योंकि कई वर्षसे आपने अपना करन्सी बेंकके भी खज़ाञ्ची नियत हैं। जीवन जैनस्त्रीसमाजकी सेवाके लिये और आप ऐसे दूरदर्शी, दानी और धर्मा- अर्पण कर रक्खा है और अपने तन, मन, त्मा हैं कि इस समय जैनजातिमें देहली धनसे बम्बईमें 'श्राविकाश्रम' बड़ी योग्यतानगरमें सर्वशिरोमणी अग्रसर हैं। हम पूर्वक चला रहे हैं । इस संस्थामें स्थायी यही चाहते हैं कि आप चिरायू होकर फंड बहुत कम होनेसे हरएक जैनीका जैन समाजका ज्यादे कल्याण करें। कर्तव्य है कि समयानुसमय मगनबाईजी __ (१७) मालवा दि. जैन प्रान्तिक द्वारा स्थापित यह आश्रमको येनकेनप्रकासभाके संचालकों:-कई वर्षसे श्रीमान् रेण सहायता देते रहना चाहिए । 'भारत दानवीर शेठ हुक्मचन्दजीकी कोशिश और जैनमहामंडल'ने आपको 'जैनमहिलासहायतासे यह सभा बहुत उन्नति कर रही रत्न' के पदसे विभूषित किये हैं सो है, जिसके संचालकोंका यह ग्रुप फोटो है। उचित ही है । हम यही चाहते हैं आप पहले लाला हजारीलालजी मंत्री थे और चिराय होकर जैनस्त्रीजातिकी उन्नतिम अब एक सालसे बड़नगरवाले लाला भगवानदासजी मंत्री हैं। जो बड़ी योग्यता- सा त९ पास रह । * इसी तरह दत्तचित्त रहें। पूर्वक कार्य चलाते हैं। " (२०-२१) श्री चन्द्रगिरि पर्वतका (१८) महासभाके कितनेक संचालकों- दृश्यः-इस चित्रका परीचय पृष्ठ ७२ पर अपनी भारत. दि. जैन महासभाके कितनेक दिया गया है ।
SR No.543085
Book TitleDigambar Jain 1915 Varsh 08 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1915
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size19 MB
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