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सचित्र खास अंक.
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चित्रपरिचय |
(१) कल्पतरुरिञ्चन ।
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सूखा हुआ कल्पवृक्ष फिर हराभरा होने लगा । श्री रुषभ ब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुररुपी गमले से ब्रह्मचर्यरुपी कल्पवृक्षके अङ्कुर फूट निकले हैं । अधकि झोंकोंसे और प्रचंड आतपसे रक्षा करके इन अङ्कुरोंकी वृद्धि करना आपका धर्म है। इसका निरीक्षण करना आपका प्रधान कर्म है । धनदानरूपी जलसे सिश्चन करना मानो अपने धर्मकी रक्षा करना है । इसको सर्व प्रकारसे सुरक्षित रखना मानो अपनी जातिको सुरक्षित रखना है । देखिए, कहीं ऐसा न हो कि सिञ्चनके अभाव या न्यूनता के कारण यह लहलहाता अङ्कुर, यह हराभरा पौधा, मुरझा कर सूख जाय ।
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सावधान ! जैन जाति सावधान ! जिस कल्पवृक्षके अमृतमय फलोंसे जातिका जीवन स्थिर रहता है, उसके अङ्कुरकी रक्षा, वृद्धि और निरीक्षण मूख्य कर्तव्य है ।
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इस सचित्र खास अंक में जिन २ त्यागी, भट्टारक, तीर्थक्षेत्र, बोर्डिंग, महोत्सव, श्रीमान और विद्वानोंके चित्र प्रकाशित किये हैं, उन सबका परिचय देना अत्यावश्यक समज़ कर हम यहांपर उनका संक्षिप्त परिचय प्रकट करते हैं जो हमारे पाठकों को अतीव रुचिकर और उपयोगी होगा ।
करना आपका
आपको
विश्वास
[वर्ष ८
रहे कि इस महावृक्षकी सुविस्तृत शाखायें यत्र तत्र पै.ल कर सर्वत्र धर्मका प्रचार, करने में समर्थ होगी ।
उंचा उदार पावन, सुख शान्ति पूर्ण प्यारा, यह कल्पवृक्ष सबका, निजका नहीं तुम्हारा रोको न तुम किसीको, छायामें बैठने दो, कुल जाति कोई भी हो, संताप मेटने दो ।। इसलिये हम कहते हैं किसिञ्श्चन करो! सिश्चम करो !! सिञ्चयन करो!
"देवेन्द्रपसाद"
णीय और बोधप्रद चित्र वृक्षके पूर्ण यह ब्रह्मचर्यरुपी वृक्ष अतीव आकर्षआकार में शाखाएं, फूल, फल, पत्तों आदि सहित है, जिसको भव्य नर श्रद्धारूपी जलसे और भव्य नारी भक्तिरुपी जलसे सिञ्चन कर रही है ।
प्रथम अङ्कुर सम्यग्दर्शन बताया गया है और उनमेंसे उदासीन, साधु और गृहस्थ ऐसे तीन अण्कुरों निकले हैं ।
उदासीनमें से निकले हुए अङकुरोंक्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम,