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________________ [३३ www अक १] कुंरपाल सोनपाल प्रशस्ति ३४. तु लेभाते । प्राज्यपुण्यप्रभावतः देवगुवोंः सदा भक्तौ । शश्वती नन्दतां चिरम् । ३१ । मथ तयोः परिवारः । सङ्घराज [ ----1--1 ३५. - - - - - - । - - - - - - - - । - - - - - - - -। ३२ । सूनवः ___ स्वर्णपाल - । - - - - [ चतुर्भुज ] - - - - - - - - [पुत्री ] युगलमुत्तमम् । ४३ । प्रेमनस्य त्रयः पु[ श्राः - - -] ३६. षेतसी तथा । नेतसी विद्यमानस्तु सच्छोलेन सुदर्शनः। ३४ । धीमतः सङ्घराजस्व । तेजस्विनो यशस्विनः । चत्वारस्सनुजन्मान ------ मताः ३५कुंरालस्य स३७. दार्या । - - - - - - - - । - - - - - - - - । - - - - पातप्रिया । ३६ । तदङ्गजास्ति गभ्भीरा जादो नाम्नी [स]- - - । -------- ज्येष्ठमळो गुणाश्रयः । ३७ । ३८. सङ्घश्रीसुलसश्रीर्दा । दुर्गाश्रीप्रमुखैनिजैः । वधूजनैयुतौ भाता । रेषश्री नन्दनी सदा । ३८ । भूमण्डलसमारङ्ग । सिन्ध्वर्कयुक्त [- - - । - - - - - - - - - - - - - - - - - । ३८] 2 लेख का सारांश (लेख की भाषा सरल होने के कारण पूरा अनुवाद नहीं दिया ) कि १-३ मंगलाचरण । , ४-५ प्रशस्ति का रचना काल । विक्रम संवत् चन्द्र ऋषि रस भू अर्थात् १६७१,शक संवत् १५३६, राध ( वैशाख ) मास, वसंत ऋतु, शुक्ल पक्ष, तृतीया तिथी, गुरुवार रोहिणी नक्षत्र । ६ अंचल गच्छ की प्रशंसा । ७ उप्रसेनपुर (आगरा नगर ) की शोभा का वर्णन । ८-९ उपकेश (ओसवाल ) ज्ञातीय, लोढा गोत्रीय, श्रीमंग की स्तुति । १० उख के पुत्र वेसराज के गुणों का वर्णन । ११ बेसराज के पुत्र जेठू और श्रीरंग का वर्णन । ११-१२ जेठू के पुत्र जीणाहि और मल्ल[सीह ] का वर्णन । १२ श्रीरंग का पुत्र राजपाल, तिस का वर्णन | १३ राजपाल की राजदरबार में बड़ी प्रतिष्ठा थी, और उस के ऋषभदास और पेमन दो पुत्र थे। १४ उन में ऋषभदास ( अपरनाम रेषा) बडा था । इस की भार्या रेषश्री । , १५-१६ ऋषभदास ने मंदिर में श्रीपप्रप्रभ के नये बिंब की प्रतिष्ठा कराई थी। और यह निबय पूर्वक नहीं कहा जा सका कि पंक्ति ३४ के अंत और पंक्ति ३५ के आदि में कितने अक्षर १ प्रतीत होता है कि प्रशस्ति यहाँ समाप्त हो गई।
SR No.542003
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1923
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1923
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size20 MB
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