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________________ rrorerrrrrrrrrrr १९२ जैन साहित्य संशोधक [खंड , ते घणे भागे फुजबोले पोताना माषांतरमा कर्यो छे आपणा आ ऊहापोह उपरथी आपणे ए निश्चय तेवो ज हतोः एटले तस " जे ध्रुजे छे ते " अने थावर उपर आवीशु के पुराणा बौद्ध धर्ममा भिक्षु मांसाहार " जे बलवान् छे ते." क्वचित् ज करतो, अने गृहस्थ तो तेना करतां पण ओछी, - गमे तेम हो, पण ए तो स्पष्ट छ के बौद्ध गृहस्थने वखत मांस खातो. केम के गृहस्थ कांई भिक्षा मांगतो मात्र जाते हिंसा करवामांथी ज नहीं. परन्तु मत्स्य अ- नहीं. परंतु तेने प्रवास विमेरेना प्रसंग दर्मियान बौद्धेतर थवा मांस वेचातुं लेवामांथी, तेम ज अन्य रीते पण प्राणी वर्ग पासथी तेवो खोराक लेवानी रजा आपवामां आवी वधने उत्तेजन आपवामाथी पण अलग रहेवान कहेवामा हती.. -- आव्युं हतुं. केम के जे माणस मास्य अथवा मांस खरीदे संपूर्ण अहिंसानुं पालन तो मोटामां मोटा ज्ञानी पुरुछे ते माछीमार अथवा कसाईना कार्यने अनुमति आपे षने माटे पण 'अशक्य छे. अने जेम घणा माणसो धारे छे ज. खरुं जोतां तो ते वधारे (पाप) करे छे. ते" बीजा छ छ तेम आ कांई नवी पण शोध नथी. आ विषयमा पासे हिंसा करावे छे” “हिंसाने उत्तेजन आषे छे" महामार . महाभारतना वनपर्वमांनी धर्मव्याध-भक्तिमान शौनि कनी मनोरंजक वार्ता वांचवा जेवी छे. तेना अंते कहेलु अथवा ( महाभारत १३, ११३, ४० ) भीष्मना छे के चालवामां, बेसवामां, सुवामा, खावामा, विगरे शब्दोमां कहीए तो ते “ पोताना पसा वडे हिंसा दरेक क्रियामां अने दरेक बाबतमां असंख्य प्राणाओनी करे छे." हिंसा थाय छे. तेथी जगत्मां कोई अहिंसक नथी. ___ हं मार्नु छ के महावग्ग (६, ३१ ) ना उल्लखमा (नास्ति कश्चिदहिंसकः )' आ निर्विवाद सत्य छे. रहेलो अर्थ आ ज छे. ए स्थळे राजा पवतमस-एटले आपणने जीववा माटे जीवनी हिंसा करवी पडे छे, ए कोईए तैयार करेलुं मांस मंगावे छे, जेनुं परिणाम ए आ जीवननी एक अत्यंत द:खदायक बीना छे; "आ बधुं आवे छे के बलदना एक घातक तरीके तेनी निंदा कर. जीवता प्राणीओथी व्याप्त छे" अने " आ सर्व जीवता वामां आवे छे. वळी संयुत्त निकाय (१४, २५.३ ) २) प्राणी ओथी ग्रस्त छे.” ( जीवैस्तमिदं सर्व ) ए जुओ. त्यां हिंसा करनाराओ साथना संसर्गने पण निंदवा वा: उल्लेख सत्य छे. तेम छतां पण सर्व अनावश्यक हिंसामां आव्यो छे. महाभारत (१३, ११३, ४७) मा थी बचवानी आपणी फरज छे. ज्या ज्यां आपणाथी कचं छे के सात माणसो जीव-भक्षक छे, एटले हिंसान हिसानु बनी शके त्यां त्यां दुःख उत्पन्न थतुं अटकाववानी अने की जान पाप करे छे, जेम के-जे माणस ते प्राणी ने लावे छे, , 4 , उत्पन्न थएल दुःखने घटाडवानी आपणी फरज छे. वृद्ध जे अनुमाते आपे छे, जे हणे छे, जे वेचे छ, अथवा मीष्ममा शब्दो ( महाभारत-११३,११६,३४) ध्यानखरीदे छे. जे मांस तैयार करे छे, अने जे तेने खाय छे. मां राखवा जोईए के. “जीवनदानथी अन्य महत्तर छेल्ला बेमे अपवादरूप गणिए तो बुद्धे कहेला नियमोने बात दान हतुं नहीं अने थशे नहीं. " अनुसरतो ज महाभारतनो-आ उल्लेख छे. जो के बुद्धना प्राणदानात्परं दानं न भूतो न भविष्यति अनुयायीओना वर्तन साथे तो ते असंगत छे. परंतु कोई शंका करे के, जो गृहस्थ मांस वेचातुं [ आ आखा लेखमां आवेली टीपो आ नीचे एक पण लई शके नहीं तो भिक्षुओने जे त्रण प्रकारे शुद्ध साथे ज आपी देवामां आवे छे.-संपादक.] एवा मांसने लेवानी रजा आपवामां आवी छे, ते मांस १ शांपनहॉर, ग्रन्ड्ले ज डर मारल, रेलम्, पु० ३, पान ६२३ क्यांथी आवे ? आनो तो उत्तर स्पष्ट छ के बौद्ध साधु २.जेकॉबी, जैनसूत्र, पु. २, पा० ३३, ३१. ३. जेकॉबी, जैनसूत्र, पु. १, पा. ५ ओ गमे त्यांथी भिक्षा ग्रहण करता हता; मात्र बुद्धानु- ४. चातुर्भोतिक देहवाळा असंख्य आत्माओ छे. एवा घणा यायी पासेथा ज नहीं.२७ दहो एकस्थाने भेगा थवाथी ज तेओ दृष्टिगोचर थाष छे. जेकॉबी.
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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