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________________ अक ४] डॉ. हर्मन जेकोबीनी जैन सूत्रोपरनी प्रस्तावना नास्ति अवक्तव्यः); केटलाक प्रसंगे नास्तित्व (स्याद् निर्वाणना सिद्धान्तने झीलवा माटे भूमि तैयार करी राखी नास्ति अवक्तव्यः ); अने केटलीक वखते बन्नेनुं विधान हती. एक बाबत खास नोध लेवा जेवी छ:-संयुत्त अशक्य होय छे (स्याद् अस्ति नास्ति अवक्तव्यः) निकाय जेर्नु भाषांतर प्रो. अल्डनवर्गे करेलुं छे, तेमा ___ आ वाद ते जैनोनो प्रसिद्ध सप्तभंगी नय छे. शें कोई एक ठेकाणे पसेनदि रजा अने खेमा नामनी आर्या वच्चे पण तत्त्ववेत्ता पोताना भयंकर प्रतिस्पर्धीने चूप करवाना थए लो संवाद आवे छे. तेमां राजाए मृत्युवाद तथागत प्रयोजन सिवाय, जेने प्रमाणनी जरूर नथी, एवी उघाडी हयाती धरावे छे के नहीं ए संबंधमा प्रश्न पूछे ला छे. बाबतोनी व्याख्या करवानी इच्छा करे खरो ? एम लागे जे सूत्रोमां आ प्रश्नो पूछेला छे, तेमां सामञफल सुत्त छे के अज्ञेयवादिओना सूक्ष्म विवादोए प्राय तेमना घणा -के जेनु भाषांतर उपर आपलं छे,-मां जेवा शब्दो खरा समकालीन मनुष्योने गुंचवणमा नांख्या हो अगर संजय वापरे छे तेवा ज शब्दो वापरेला छे. भमाव्या हशे; अने तेथी करीने ते सर्वेने अज्ञानवादनी भूल- बुद्धना समयना अशेयवादनी असर बुद्ध उपर थई हती भूलामणीमाथी बहार निकळवा माटे स्यादवादनो सिद्धान्त तेवा प्रकारना मारा अनुमाननी पुष्टिमां हुं महावग्ग १, एक क्षेममार्ग तरीके देखायो हशे. आ शास्त्रनी मददथी २३ अने २४ मां आपेली एक परंपरागत कथा अत्रे विरोधिओ उपर आक्रमण करनार अज्ञानवादिओ पोताना ज रजु करूं छं. ते कथामा एम जणावेलुं छे के बुद्धना साथी सामे थई जता हता. आपणे नथी कही शकता के अज्ञेय- वधारे प्रख्यात एवा सारिपुत्त अने मोगलान नामना बादना केटला अनुयायिओ, आ सप्तभंगी नयना सत्यनी बे शिष्यो, तेमना अनयायी थया पहेला सञ्जयना शिष्यो प्रतीति पामी महावीरना धर्ममा आवी गया हशे! हता अने पछाथी तेओए पोताना जूना गुरुना मतना अशेयवादनी बुद्धना उपर पण केटली बधी असर थई २५० शिष्योने पण बौद्धमागी बनाव्या हता. आ हकिकत हती ते आपणे पाली ग्रंथोमा निरुपित बुद्धना निर्वाण बुद्धे बोधि प्राप्त कर्यु त्यार पछी तरत ज बनी हती. आ विषयक सिद्धान्तमां जोई शकीए छीए. आ प्रकारनां नि. थी ए संभवित छ के पोताना नवा मतना प्रारंभ कालमा श्चयात्मक वाक्यो तरफ प्रथम ध्यान प्रो. ओल्डनबर्गे बुद्धे शिष्यो भेळववा माटे ते वखते प्रचलित एवा बीजा खेच्यु हतुं. आ वाक्यो निःशंक पणे जणावे छे के मृत्यु मतो तरफ सर्वप्रकारनी योग्य वर्तणुंक राखवानी कोशीश बाद तथागत ( अर्थात् मुक्तात्मा अथवा जेने वास्तवमां करी हशे. व्यक्तित्वनो हेतु कही शकाय ते ) हयाती धरावे छे के महावीरना सिद्धान्तोना विकास उपर, मारी मान्यनहीं; एवा प्रश्ननो उत्तर आपवा बुद्ध चोक्खी ना पाढता हता. जो तेमना समयना लोकोना सांभळवामां आवा विचा २ निर्गणना स्वरूप-कथन संवन्धमा बुद्ध जे मौन धारण कर्य हतुं ते तेमना वखतमा भले डहापम भग्लं गणारं होय, परंतु ते रो बिलकुल न आव्या होत अने आवी केटलीक बाबतो के संप्रदायना विकासने माटे तो तमाघमा परिणामो समाएला इता. जे मनुष्यना मनथी अतीत होई ते घणी महत्त्वनी गणाय कारण के बौद्ध मतना अनुपायीओने, ब्राह्मण दार्शनिको जेवा के तेना संबंधमा, तेवा प्रकारना उत्तरोथी ते लोकोने दूधमाथी पोरा काढनारा तर्कशास्त्रोमोनी विरुद्ध पोताना मतन टकावी राखबानो होवाथी, आ महान् प्रश्न के जेना विषयमा तेसंतोष न वळतो होत तो तेओ, तेवा कोई धार्मिक सुवा- मना धर्मसंस्थापके काई पग निश्चयात्मक कथन कर्यु नशेतुं, ते रक के जे ब्राह्मणधर्ममां तर्कसिद्ध निरुपित सधळी बाब- उपर वधारे स्पष्ट विचारो जणाववानी फरज पडी इती. आ रीते तोना संबंधमां-पोतानो स्पष्ट अभिप्राय न आपे, तेना पोताना गुरुए अधुरा राखेला महेलने पूर्ण करवा माटे सामग्री भेगी करवाना उद्देशथी बुद्धानेर्वाण पछी तरत ज बौधर्म पुष्कळ उपदेशोने आदरपूर्वक सांभळे ए असंभवित छे. परन्तु संप्रदायाना रूपमा विभक थई गयो हतो. आश्चर्य पामवानी जरूर वस्तुस्थिति जोतां एम लागे छे के अज्ञेयवादे बौद्धोना नथी के सिलोन जे ब्राह्मणविद्याविषयक केंद्रथी घणु दूर आवेल छे त्या बौद्धोना आ निर्वाणनो सिद्धांत असल रूपमां अखंडित १ भांडारकर-रिपोर्ट सन् १८८३-४ पृ. ९५ रही शक्यो छे.
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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