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________________ महावार निर्वाणनो समय-विचार मापने ए ज निर्णयने कबूल करवो जोईए अने वहे में जिसमें महावीरस्वामी और विक्रमसंवत् के बीच का अछी वीर-निर्वाण संवत् ए ज गणतरीए लखवानो व्यव- अन्तर दिया हुआ है नहपाण का नाम हमने पाया । हार अने प्रचार करवो जोईए. आवता नवा वर्षना छ- वह ' नहवाण' के रूप में है । जैनों की पुरानी गणना पाता जैन पंचांगोमां वीर संवत् २४४५ ना बदले में जो असंबद्धता योरपीय विद्वानों द्वारा समझी ४६३ लखवां जोईए. आशा छ के जैन पंचांग प्रका- जाती थी वह हमने देखा कि वस्तुतः नहीं है । शको अने जैन पत्र संपादको आ बाबत उपर लक्ष्य आपशे. महावीर के निर्वाण और गर्दभिल्ल तक ४७० परिशिष्ट वर्षका अन्तर पुरानी गाथा में कहा हुआ है जिसे [उपर जे लखवामां आव्यु छे, ते शरुआतमां जणाव्या दिगंबर और श्वेतांबर दोनों दलवाले मानते हैं । यह प्रमाणे श्रीयुत जायसवालना एक इंग्रेजी विस्तत नि. याद रखने की बात है कि बुद्ध और महावीर दोनों बंधना थोडाक भागना भाषांतररूपे छे. ए निबंधमा तेमणे एक ही समय में हुए । बौद्धों के सूत्रों में तथागत जैन काळगणना संबंधी विस्तत विवेचन बोलने में का निर्ग्रन्थ नातपुत्र के पास जाना लिखा है। और ते आ लेख ध्यानपूर्वक वांची जबाथी तेनो कांईक यह भी लिखा है कि जब वे शाक्यभामे की और ख्याल आवी जशे. आ इंग्रेजी निबंध लख्या पहेला जा रहे थे तब देखा कि पावा में नातपुत्र का शरी४-५ वर्ष अगाउ ज्यारे श्रीयुत जायसवाल पाटलीपुत्र रान्त हो गया है। जैनों के 'सरस्वती गच्छ' की नामना हिन्दी पत्रना संपादक हता त्यारे ते पत्रमा पण तेमणे पट्टावली मे विक्रमसंवत् और विक्रमजन्म में १८ वर्ष एक न्हानो सरखो लेख जैन निर्वाण संवत् उपर हिन्दी __ का अन्तर माना है । यथा-" वीरात् ४९२ मो लख्यो हतो.ए लेख पण आ विषयने ज लगतो छ अने विक्रम जन्मान्तर वर्ष २२, राज्यान्त वर्ष ४" संक्षिप्तमा लखायेलो होई सहज समजवा जेवो छ तेथी ते विक्रम विषय की गाथा की भी यही ध्वनि है कि पण, तेमनी ज भाषामा अत्र आपी देवमां आवे छे. ] वह १७ वें या १८ वें वर्ष में सिंहासन पर बैठे । इस से सिद्ध है कि ४७० वर्ष जो जैन-निर्वाण जैन निर्वाण-संवत् । और गर्दभिल्ल राजा के राज्यान्त तक माने जाते हैं, जैनों के यहां कोई २५०० वर्षकी संवत्-गणना का वे विक्रम के जन्म तक हुए-(४९२=२२+४७०) हिसाब हिन्दुओंभर में सबसे अच्छा है। उस से विदित अतः विक्रमजन्म ( ४७० म०नि० ) में १८ और . होता है कि पुराने समयमें ऐतिहासिक परिपाटी की जोडने से निर्वाण का वर्ष विक्रमीय संवत् की गणना वर्षगणना यहां थी । और जगह लुप्त और नष्ट हो गई, में निकलेगा अर्थात् (४७०+१८) ४८८ वर्ष केवल जैनोमें बच रही । जैनों की गणना के आधार विक्रम संवत् से पूर्व अर्हन्त महावीर का निर्वाण पर हमने पौराणिक और ऐतिहासिक बहुत सी घटनाओं हुआ । और विक्रम संवत् के अब तक १९७१ वर्ष को जो बुद्ध और महावीर के समय से इधर की है सम- बीत गए हैं, अतः ४८८ वि० पू० १९७१=२४५९ यबद्ध किया और देखा कि उन का ठीक मिलान जानी वर्ष आजसे पहले जैन-निर्वाण हुआ | पर "दिगंहुई गणना से मिल जाता है। कई एक ऐतिहासिक बर जैन" तथा अन्य. जैन पत्रों पर वि० सं० बातों का पत्ता जैनों के ऐतिहासिक लेख पट्टावलियो में २४४१ देख पडता है। इस का समाधान यदि ही मिलता है | जैसे नहपान का गुजरात में राज्य करना कोई जैन सज्जन करें तो अनुग्रह होगा | १८ वर्ष उस के सिक्कों और शिला-लेखों से सिद्ध है । इस का का फर्क गर्दभिल्ल और विक्रम संवत् के बीच गणना जिक पुराणों में नहीं है । पर एक पट्टावली की गाथा छोड देने से उत्पन्न हुआ मालूम देता है । बौद्ध लोग
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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