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________________ जन साहित्य संशोधक महावीर निर्वाणनो समय-विचार [* जेमनी ऐतिहासिक विषय तरफ रुची छे अने जेओ ए विषयना लेखोनुं मननपूर्वक अध्ययन-श्रवण करे छे तेओ सारी पेठे जाणे छ के, जैन इतिहास अने जैन काळगणानाना ॐ नमः रूपे जे श्रमण भगवान् श्री महावीर देवनो निर्वाण-समय छे तेना विषयमा पुरातत्त्ववेत्ताओमा आज घणां वर्षोथी परस्पर मतभेद अने वाद-विवाद चाली रह्यो छे. जैन धर्मना प्राचीन साहित्यमां पण खुद ए बाबतमा एकता जणाती नथी. महावीरदेवनो निर्वाण. समय, ए जैन इतिहासमां तो सौथी अय भाग भजवे छे; परन्तु अखिल भारतीय इतिहासमां पण तेनी देरली ज महत्ता छे अने ए कारणने लईने पुरातत्त्वज्ञोना माटे ते एक घणो ज अगत्यनो सवाल थई रह्यो छे. सामान्य रीते जैन ग्रंथोनी वळण उपरथी एम मानवामां आवे छे के, हिन्दुस्तानमा वर्तमानमा जे विक्रम संवत्ना नामे संवत् प्रवर्ते छ तेना प्रारंभ पहेलो ४७० वर्षे, अने ई० स० ५२७ पूर्वे, श्रमण भगवान् श्रीमहावीर, निर्वाण थयुं हतुं. जैन धर्मना दिगंबर अने श्वेतांबर नामना बने प्राचीन संप्रदायाना घणा ग्रंथो उपरथी ए निर्णय निकळे छे. परंतु प्रसिद्ध जैन साहित्यज्ञ जर्मन विद्वान् डा. हर्मन जेकोबीए, आचार्य श्री हेमचन्द्रना एक उल्लेखथी प्रेराई ए निर्णयमा शंका उपस्थित करी अने तेने मळतां बीजां केटलांक पमाणोनो आश्रय लई, ए जुनी मान्यताने असंबद्ध जणावी. त्यार पछी बीजा घणाक विद्वानोए ए संबंधो, परस्पर खंडन-मंडन चालु कयु अने एक बीजाए पोत पोताना कथनने सत्य सिद्ध करवा अनेक जातनो ऊहापोह को. जार्ल चार पेंटियर नामना एक विद्वाने ' इंडियन एन्टीक्वेरी' नामना सुप्रसिद्ध मासिक पत्रना सन् १९१४ ना जून, जुलाई अने ओगष्ट मासना अंकोमा, ए विषयनो एक वणो ज विस्तृत लेख लख्यो अने तेमां महावीर निर्वाण विक्रम संवत् पूर्वे ४७० बर्षे नहीं परंतु ४१० वर्षे (ई० स० ४६७ पूर्व) थयुं हतु, अने परंपराप्रमाणे जे गणना गणवामां आवे छ तेमां ६. वर्ष वधारे छ ते कमी करवा जोईए, एम सिद्ध करवा विशेष प्रयास को हतो.. पोताना ए विस्तृत लेखमा प्रथम तो ए विद्वाने एम सिद्ध कयु के, मेरुतुंगाचार्य विगेरेना विचारश्रेणी आदि ग्रंथोमा जैन काळगणना संबंधी जे पाचीन गाथाओ आपली छे, तेमां जणावेला राजाओनो कोई पण प्रकारनो परस्पर ऐतिहासिक संबंध के ज नहीं. तेम ज महावीर निर्वाण पछी ४७० वर्षे जे विक्रम राजा थवानो उल्लेख छ तेनो इतिहासमां क्याए अस्तित्व नथी. माटे ए पुराणी गाथाओमा जे प्रकारे काळगणना करवामां आवी छे अने जे राजाओना राज्यकाळ आप्या छे ते निर्मूळ छे. लेखना बीजा भागमा ए विद्वाने एम बताव्युं के सामण्णफलसुत्त विगेरे केटलाक बौद्ध ग्रंथो उपरथी जणाय छे के, महावीरदेव अने बुद्धदेव बंने समकालीन हता; अने बौद्ध ग्रंथ प्रमाणे बुद्धदेवनो निर्वाण ई. स. पूर्वे ४७७ वर्षे थयुं हतुं. जनरल कनिंग्हाम अने मोक्षभुल्लरे पण ए तारीख मान्य राखी छे. बुद्धदेवनी मृत्युसमये ८० वर्षनी अवस्था हती. तो हवे जोवान के, गाथाओमा जणाच्या प्रमाणे जो महावीर देवनो अंतकाळ ई. स. पूर्वे ५२७ वर्षे थयो होय तो ते वखते बुद्धदेवनी उमर फक्त ३० वर्षनी हशे. परंतु ए सौ कोई माने छे के छत्रीस वर्षनी उम्मर पहेला तो गौतम बुद्धने बोधिज्ञान पण थयुं न होतुं, तो पछी तेमना ----- - *आ लेख चारेक वर्ष उपर लखायो इतो. अने एक पत्रमा ते वखत प्रकट करायो इतो. हवे आपण विषयना यथा लेखो, आ पत्रमा क्रमथी प्रकट करवानो विचार राख्यो छे तेथी आ लेख अह प्रकट करवो आवश्यक भान्यो छे.-दिक. लेखो अनुवाद हा पळीना अंकामां आवामां आवशे.-संपादक.
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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