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________________ अंक.] डा. होर्नलना जैन धर्म विषेषना विचारो. २०१ ....... .ran. स्वतंत्र पुसवा मळी शके नहीं त्यां सुधी तेमना उपर अथवा साध्विओना उपदेशथी ए कार्य करवामां आव्यु संपूर्ण विश्वास राखी शकाय नहीं, ए स्वाभाविक ज छे. तेनां अने जे गण अगर संघना तेओ अनुयायी हता परंतु हवे आवा स्वतंत्र पूरावानी शोधो पण गण वर्षोमां तेनां नामो आपेला छे. आ समर्पणना लेखोमांथी घणी थएली छे, अने तेनुं मान वीएनाना प्रो. बुल्हरनी तीव्र उपयोगी बाबतोना विश्वसनीय पुरावाओ मळी आवे छे. 'बुद्धिने घटे छे. ई. स. १८७१ मां मेजर जनरल सर प्रथम तो आ लेखोमा उपदेशक तरीके उल्लिखित ए. कनीन्हामे मथुराना कंकाली टीलाना खडेरोमांथी साधु अगर साध्विओना जे जे गण-संघ शोधी काढेला लेखानु पुनर्निरीक्षण करीने प्रो. बुल्हरे आदिनां नामो एमां आपेला छे ते गणादि ई. स. ना तमांना केटलाक लेसोमां जैनोना केटलाक आचार्यों अने पहेला अने बीजा सैकामा विद्यमान हता ए बाबतनो विभागोनां खास नामी शोधी काढयां; अने तेथी ते वख- पुरावो कल्पसूत्र अने बीजा जैन ग्रंथोमाथी आपणने तना आकाओं लॉजील सव्र्हे खातान. वडा डॉ० जे मळी आवे छे. जे कौटिक नामना गणनो एमां वारंवार बर्गेस द्वारा ते टेकराने बराबर खोदाववानी व्यवस्था कर- उलेख थएलो छे ते गण सुस्थिताचार्ये स्थापेलो हतो. वामां आवी, जे मुजब डॉ० फुहररना अध्यक्षपणा नीचे आ सुस्थित ई. स. पूर्वना बोजा सैकाना पूर्वार्धमा संघना १८८९ थी १८९३ सुधी अन पुनः १८२६ मां तेनुं आचार्य तरीके विद्यमान हता. स्पष्ट रीत ज आ गण जैनोनी खोदाण काम करवामां आव्यु. आथी बीजा घणा नवा श्वेतांबर शाखानो हतो. आ रीते आपणने आ लेखो उपलेखो हाथ लाग्या अने तेनी नकलो डॉ० बुल्हर तरफ रथी ई. स. पर्वेना बीजा सैकाना मध्यमां जैन श्वेतांबर रवाना करवामां आवी. तेमणे ते लेखोर्नु परीक्षण करी संप्रदायनी विद्यमानतानो परोक्ष पुरावो मळे छ एटलु तमाथी केटलाक खास खास लेखो चूंटी काढथा अने ज नहीं पण ई. स. ना प्रारंभना बे सैकामा ए संप्रदाय वीएना ओरीएन्टल जर्नलमां तथा एपीग्राफीआ इंडी- नो कौटिक नामे गण मथुरासुधी फेलाएलो हतो तेनो काना प्रथम बे पुस्तकोमा प्रसिद्ध को. आमांना केट. प्रत्यक्ष पुरावो पण मळे छे. तथा ए लेखोमा तेनो जे लाक लेखो घणा उपयोगी छ. कारण के तेमां इंडो वारंवार उल्लेख आवे छ तेथी ते मथरामां सारी पेठ जासिथीयन संवत् एतले के इंडो-सिथीयन राजा कनिष्क, मेलो हशे एम पण स्पष्ट जणाय छे. ते समय बुलन्द इविष्क अने वसुदेवे उपयोग करेला संवतनी मितिओ शहरमां पण एक एवी संस्था हती जेनो पुरावो ए लेखोआपेली छे. आ राजाओ ई० स० ना प्रथम बे सैका ओमां मां आवता उच्चनगर अथवा वारण नामना समुदायना थएला छे अने तेमनुं राज्य हिंदना उत्तर-पश्चिम किना- साधुओनां नामो उपरथी मळे छे. ए बन्ने नामो उक्त राथी टेठ मथुरासुधी प्रसर्यु हतुं. आ लेखोनी मिति, ते शहेरना जुना नामो हता. संवत्ना ५ था ९८ मां वर्ष सुधीनी छे, जे ई० स० ना. बीजी बाबत ए छे के, संघना एक अंग तरीके ८३ थी १७६ वर्षनी बराबर थाय छे. आमांना घणा साध्वी वर्गने जे गणवामां आवे छे तेनी हयातीनो पुरावो लेखो तो जन प्रतिमाओनी बेसणी ऊपर कोतरेला छे. पण आलेखो परो पाडे . अने ते उपरथी विशेष ए तेमां ते मूर्ति बन बनार श्रावक अगर श्राविकाओनां, जे पण हकीकत मळी आवे छ के पोताना धर्मनो विकास मंदिरमा ते मूर्ति स्थापित करवामां आवी तेनां, जे साधु करवामां आ साध्वीओ पण घणो भाग लेती हती. अने ५ आ विषयनी शोध खोलना तेमना लेखो वीएना ओरिएन्टल खास करीने श्राविकाओमां. कारण के एक अपवाद जर्नल, १०८ थी ९१, अने १८९६ मां प्रसिद्ध थया छे; तेम ज सिवाय बधी ज श्राविकाओए साध्वीओना उपदेशथी १८९७ मा इमिरीयल एकेडेमी ऑफ सायन्सना जर्नलमां पण प्रतिमा समर्पण करवानुं जणाव्युं छे. आ वातने जैन तमणे ते प्रकट कराव्या हे. ६ जुलो तेमना सर्वे रिपोर्टर , भाग २. सिद्धान्त ग्रंथोना लखाणथी समर्थन पण मळे छे. जैन
SR No.542001
Book TitleJain Sahitya Sanshodhak Samiti 1921
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJain Sahitya Sanshodhak Karyalay
Publication Year1921
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Sahitya Sanshodhak Samiti, & India
File Size17 MB
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