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________________ वस्तु में पचे को सुयंत्रणा और मुनियमन देने की शक्ति हो सकती है साधन बिना मोन्टीसोरीशाला का रखना या न रखना बराबर है। ये साधन कहां २ हैं और वे कैसे २ होने चाहिये इसके विषय में बाद में विचार किया जायगा। परन्तु इतनी बात को लक्ष में रखना चाहिये कि हर एक साधन परिपूर्ण ही होना चाहिये । विज्ञान की प्रयोग शाला में साधन की जरा भी कमी नहीं चल सकती त्यों मोन्टीसोरी शाला में साधन की न्यूनता, या अपूर्णता नहीं चल सकती । कारण कि मोन्टीसोरीशाला प्रयोगशाला के साथ साथ शिवाशाला भी है । मोन्टीसोरी का प्रधान उद्देश्य शिक्षाशास्त्र की प्रयोग शाला खड़ी करने का है इससे भी खराब बनाषट का, अचौकस नाप, खोड़ पाला साधन मोन्टी सोरी पद्धति में नहीं चल सकता है । हरएक साधन बराबर नाप का न बना हुआ हो तो विद्यार्थी के विकाश में विघ्न आता है शिक्षक भी पद्धति का जो स्वरूप देखना चाहता है वह नहीं देख सकता है और जो परिणाम पद्धति द्वारा सिद्ध हो सकते हैं वे सिद्ध नहीं हो सकते हैं। __ मोन्टीसोरी पद्धति में जो साधन हैं उन साधनों को किस तरह से काम में लाना उसके सम्बन्ध में इसके बाद कहा जायगा । परन्तु यहां इतना कहने की जरूरत है कि जो साधन जो हेतु सिद्ध करने के लिये बनाये गये हैं वे साधन उस हेतु की सिद्धि के लिये ही काम में लाये जाते हैं। इस पद्धति में प्रत्येक साधन कुछ न कुछ विशिष्ट हेतू से विशिष्ट शिक्षा के लाभ के लिये रचने में पाया है। अमुक एक साधन बच्चा अपनी इच्छानुसार इस पद्धति को काम में नहीं ला सकता। जो हेतु सिद्ध करने के लिये जिस तरह साधन काम में लाने का स्पष्ट कहा गया हो उससे विरुद्ध उसको काम में लाने को डॉ० मोन्टीसोरी ठीक नहीं समझती है । इस विषय में किन्डरगार्टनीस्ट का मोन्टीसोरी के साथ मत भेद है । किन्डरगार्टनीस्ट कहते हैं कि इस तरह से साधन का उपयोग विशिष्ट और मर्यदित करने की बच्चे की सर्जन शक्ति और कल्पना शक्ति पर अंकुश रखा जाता है । किन्दरगार्टनीस्ट का यह कहना है कि मोन्टीसोरी के साधनों से जो विशिष्ट लाभ प्राप्त किया जा सकता है वह लाभ बच्चा क्यों न प्राप्त करे । परन्तु उन साधनों द्वारा उनको दूसरी दिशा में कल्पना शक्ति और सर्जन शक्ति को बढ़ाने की रुकावट नहीं होनी चाहिये । उल्टी इससे तो
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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