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________________ विकाश के साधन गिनकर स्वीकार किये हैं। साधनों की योग्य और अयोग्यता की निर्णय करने के लिए डॉ० मोन्टीसोरी ने दो नियम रक्खें हैं। एक तो यह कि शिक्षा के काम में उपयोगी साधन वही कहा जा सकता है कि जो अपने पाप बच्चे को उसको काम लाने मात्र से शिक्षा दे, तथा इन साधनों में ऐसी खूबी होनी चाहिये कि यदि वे खराबतौर से काम में लिये जायें तो बच्चे को उसकी शीघ्र खबर पड़ जानी चाहिये कि जिससे वह खराबतौर पर काम में न लिया जा सके और उसकी उसको फौरन ही खबर हो जाय और वह शीघ्रमेव भूत को सुधार सकें। साधन में स्वयम् भूल सुधारने की शक्ति है या नहीं यह जानना मुश्किल नहीं है। साधन को काम में लाने से शीघ्र उसकी खबर पड़ जाती है सिर्फ बच्चे को इससे शिक्षा मिलती है या क्या ? आदि बात जानना कठिन नहीं है। जिन साधनों को बच्चा बार २ काम में लाता है वे साधन उसको शिक्षा देते हैं। स्वतंत्र स्थिति और समधारण बच्चा ऐसा कुछ काम नहीं करता है जो उसके विकाश को मददरूप न हो। डाक्टर मोन्टीसोरी का यह सिद्धान्त है कि बच्चा जिनं २ साधनों का बार २ उपयोग करता है, जिस क्रिया के पुनरावर्तन में तल्लीन रहता है वह साधन बच्चे के विकाश का पोषक है। जिसमें मजा आता है उसी में बच्चा पुनरावर्तन करता है विकाश के लिये जिस वस्तु की जरूरत है उसी वस्तु में बच्चे को आनन्द आता है। इससे यह सिद्ध होता है कि साधनों को काम में लाने से पुनरावर्तन में ही विकाश है। साधनों के काम में लाने के पुनरावर्तन से शिक्षा आती है। साधन ढूंढ़ने के विषय में मॅडम मोन्टीसोरी अपने विधेय को अर्थात् बालक के अनुसार ही कार्य करती है। उसने बच्चे की वृति और आवश्यक्ता का अच्छी तरह निरक्षण कर साधनों का निर्माण किया है। बच्चा किस छेद में कौनसा पदार्थ डालना पसन्द करता है इस बालवृति को बच में रखकर डाक्टर मोन्टीसोरी ने आँख की इन्द्रिय को शिक्षित करने के लिये दद्दामों और टावर के साधन हूंढ़ निकाले हैं। छेदों में कुछ न कुछ डालने की बालवृति में से यह साधन पैदा करने में अपूर्व पुद्धिबल की जरूरत है परन्तु छेदवाले पदार्थों में कुछ न कुछ साधन अनेक तरह के हो सकते हैं उनमें से इन दट्टाओं की पेटी का साधन किस तरह हैढ निकाला यह भी विचारने योग्य बात है। यह साधन इसलिये स्वीकार किया गया है कि उस पर
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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