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________________ (१०) मानने की लोगों को स्वाभाविक ही टेव हो गई है इसका कारण यह है कि भाज तक की शिक्षा पद्धति तरंग पर रची गई है। अब तक मनुष्यों ने बच्चों को क्या पढ़ाना और कैसे पढ़ाना इस बात का विचार किया है परन्तु किसको पढ़ाना इस बात का विचार दोनों बातें करते वक्त लक्ष में नहीं लिया गया है। मनुष्य का बच विषय की तरफ गया है व धेय तरफ नहीं। मनुष्य की दृष्टि विषय का निर्माण करते वक्त संकुचित रहती है कारण मनुष्य अपने से अधिक तेजस्वी मनुष्य की कल्पना नहीं कर सकता है। अतएव आज जो प्रजा मौजूद है उससे तेज और अधिक प्राणवान प्रजा बनाने का विचार उसके मन में नहीं पाता है। मनुष्य स्वभाव से ही मावि मनुष्य को अपने सदृश बनाना चाहता है और उसी अनुसार कार्य करता है । इसलिये हमारे बीच एक ही गांधी, एक हीटागोर, एक ही लेनिन और एक ही मेक्सवनी है। ये मनुष्य की बनाई हुई शिक्षा की प्रचालिका की जड़ में से अलग हो चुके हैं इसलिये महान् हैं अथवा शुद्ध और सची शिक्षा उन्होंने अपने पाप ग्रहण की है उसी का यह परिणाम है। डाक्टर मोन्टीसोरी शिक्षा के विचार में परम्परा की बेड़ी से मुक्त है। गतानुगतिक कायदे के अनुसार उसके विचार की धारा नहीं है। बच्चों के लिये इतना जरूरी है कि अमुक शिक्षा बिना बच्चों का कार्य नहीं चल सकता। इन विचारों से आजकल के शिवा-शास्त्री जो अभ्यास क्रम रचते हैं परन्तु डॉ० मोन्टीसोरी के माफिक अपने साधनों का निर्माण नहीं करते हैं। आज तक के शिवा शास्त्रियों ने शिक्षा के लिये जो कुछ किया है अथवा साधन बनाये हैं तथा उनको काम में लाने के लिये जिस पद्धति की घटना घटित की है वह सबको सिखाने के विषय को लक्ष में रखकर की गई है परन्तु सीखने वाले विधेय को लच में रखकर नहीं की गई है। बच्चे स्वयम् कैसा सीखते हैं पसका सूक्ष्म अवलोकन करने के बाद डाक्टर मोन्टीसोरी ने अपने साधन बनाये हैं। उसने अनेक जात के साधन बालकों के पास रखकर जाति अनुभव किया है। अनेक तरह के साधन जो बालकों के लिये निरुपयोगी सिद्ध हुये वे फेंक दिये गये। जो साधन बच्चों ने स्वयम् अपनी शिवा के लिये अपने भाप स्वयंस्कृति और किसी तरह के दबाव विना काम में लाये और जो साधन उनके शिक्षित करने में शक्तिमान निकलें और जिन साधनों में से बच्चों को स्वयं भूल सुधारने की शक्ति मालूम हुई उन्हीं साधनों को डाक्टर मोन्टीसोरी ने बाल
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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