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________________ (६३) संयमित वह है जो अपने आप का राजा है अतएव जब उसको जीवन में कोई कार्य करने की आवश्यकता मालूम होती है तब उस सम्बन्धी वह अपना वर्तन योग्य तौर पर मोड़ सकता है । इस तरह की सक्रिय संयमितता बच्चों में लाना सरल नहीं है तो भी इस एक ही वस्तु पर जीवन का प्राधार है। अधिकार के बल से उत्पन्न संयम कि जो जड़ है, वह अचलायमान है, वह उससे भिन्न वस्तु है। विकसित बच्चे को स्वाधीनता मिलनी चाहिये उसका अर्थ यह है कि उसको विकसित परिस्थिति में प्रवृत्ति की पसंदगी की उसको स्फुरणा हो तब प्रवृत्ति करने की छूट मिल जानी चाहिये। स्वतंत्र का अर्थ अतंत्र तथा परतंत्र दो में से एक भी नहीं होता है। हम दूसरों के आचारों में से बच्चे को मुक्त करके उस को खुद के आधार पर रखने का ही नाम उसको स्वतंत्र मार्ग में ले जाना है। उक्त स्वतंत्रता की एक मर्यादा सामुदायिक हित की है हम सामुदायिक हित को सभ्यता अथवा खानदानी के नाम से पहिचानते हैं इससे बालक जब २ दूसरे को चिड़ाय या तंग करें अथवा सभ्य और अयोग्य कार्य करें वहां पर हम उनको रोक सकते हैं इसके सिवाय दूसरी सब उपयोगी प्रवृत्ति किसी भी रूप की ही क्यों न हो उसम हमें दखल नहीं करना चाहिये। बच्चा बराबर जिस वण में काम करना शुरू कर देता है उस क्षण की स्वयंस्फूरित क्रिया को यदि खराब करें तो उसके बहुत खराब परिणाम प्राते हैं। इस तरह हम खुद जीवन को खराब करते हैं। ज्यों उषःकाल में सूर्य भव्य दिखता है और फूल ज्यों अपनी पहिली पंखड़ी को विकसित करता हुआ भव्य दिखता है त्यों समष्टि अथवा जनता का यह नाजुक अथवा सुन्दर बाल्यकाल भव्य दिखता है इसलिये उसको धार्मिक भावना से सन्मान देना चाहिये । शिक्षा की कोई भी क्रिया सफल होगी तो वही क्रिया सफल होगी कि जो जीवन में सम्पूर्ण विकाश को मदद करनेवाली होगी। इस विकाश के मददगार होने के पहले शिक्षक को चाहिये कि वह बच्चों की स्वयंस्कृरित हिलचाल को न रोके तथा अपनी इच्छानुसार काम बालक पर न लाई यह बात मुख्य करके शिक्षक को सीखनी पाहिये।
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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