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परन्तु ऐसा नियमन मुँह की प्राज्ञा से अथवा उपदेश स अर्थात् आज की प्रचलित नियमन की युक्तियों से नहीं आ सकता है ऐसा सच्चा नियमन शिक्षक पर आधार नहीं रखता है परन्तु हरएक बच्चे के अन्तर जीवन में होने वाले विकास पर अवलम्बित है ।
नियमन उपालम्ब से अथवा बड़ों के उपदेश से नहीं लाया जा सकता है । भूल निकालकर, भूल के लिये उपालम्ब देकर अथवा भूल की वजह से लड़कर नियमन नहीं लाया जा सकता है कदापि शुरूआत में ऐसे साधनों से ऊपर की सफाई का दिखाव होगा परन्तु वह लम्बे समय तक नहीं रहेगा ।
सच्चे नियमन का प्रथम प्रभात की प्रवृति में बच्चे को अपूर्व रंग लग जाता है उसके चहरे पर वक्त का भाव, अत्यन्त एकाग्रहता और काम में खंत इस बात की साक्षी देता है कि बालकने नियमन के मार्ग पर प्रथम पर रखा है। फिर प्रवृत्ति कैसी ही क्यों न हो वह इन्द्रिय शिक्षा के साधन का खेल हो अथवा बटन या हूक भराने का हो अथवा प्याले और रकाबी उठाने का हो । परन्तु यह प्रवृत्ति जो हुक्मी से बच्चों पर नहीं लादी जा सकती है यह प्रवृति स्वयंस्फुरित होनी चाहिये अर्थात् इसका जन्म बच्चे के विकास की आवश्यक्ता में होना चाहिये और वह जन्म लेती ही है कारण कि विकास के लिये मनुष्य स्वभावतः प्रवृति करता है और जीवन की अंत शक्तियें जो प्रवृत्ति तरफ स्वाभाविक तौर पर जोर रुकावट बिना झुकती हैं अर्थात् जिन २ प्रवृतियों में मनुष्य धीरे २ ऊंचा चढ़ता है वही प्रवृति नियमन देने वाली है। इस तरह की प्रवृति मनुष्य में सुव्यवस्था लाती है उसके समक्ष विकाश की अनन्त शक्तियों का प्रदेश खोलती है ऐसी प्रवृति का जब तक बच्चा पोषक और विकाशक है तब तक वह राजी खुशी से बारंबार करता है। छोटे बच्चों का अपने शरीर पर काबू नहीं होता है कारण कि उनमें स्नायुओं का नियमन नहीं हैं इससे शुरू ही शुरू में बच्चा सारा वक्त व्यवस्था विदून हिलचाल करता है जमीन पर पड़कर पग पछाड़ता है तरह तरह का नखरा करता है और रोता है । हिलचाल की समतोलपना का अभाव इसका कारण है उनमें नियमन की सुप्रवृति है परन्तु वह उसके लिये स्पष्ट नहीं है उसको प्राप्त करने के लिए वह प्रयत्न करता है । इस प्रयत्न में वह बहुत गलतियें करता है और मेहनत करता है। हमें उनको इस में अनुकूलता कर देने