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(1) होती है और साथ ही साथ लिखावट के लिये हाथ तैयार होता है। इस तरह लकीरें मोन्टीसोरी पद्धति में बच्चे स्वयं करते हैं।
सेगुइन और मोन्टोसोरी पद्धति में चित्र शिक्षा की पुरानी पद्धति का परिवर्तन है।
४-बुद्धि और नीति की शिक्षा-सेगुइन बुद्धि की शिक्षा पठन और गणित की शिक्षा से देता है। इन विषयों की स्मृति से कसरत होती है और बच्च की समझ का प्रदेश बढ़ता है भाषा ज्ञान के बढ़ते ही बच्चा अधिक समाजिक और व्यवहार कुशल बनता है। सेगुहन में बुद्धि की यही शिक्षा है।
शिक्षक श्रद्धा से नीति की शिक्षा देता है। वह जानता है कि मृढ़ बच्चों में शक्ति है। अलावा इसके शिक्षक को यह भी समझना चाहिये कि निश्चयपूर्वक मूढ़ बच्चा विकास करेगा। शिक्षक को दृढ़ विश्वास होना चाहिये कि मूढ़ों के लिये किये हुये काम में उनका अन्तरात्मा खिल जायगा । चेतनेवाली क्रियाएँ उनमें स्फ्रायमान होगी और श्रम भरे हुए सर्जन उनमें खिलेंगे। और यही मूढों की नीति शिक्षा गिनी गई है। - सामान्यतः वातावरण ही सच्ची नीति शिक्षा है यहां पर मोन्टीसोरी का विचार गर्भ में है।
सिद्धान्त विचार मोन्टीसोरी के सिद्धान्त विचार में मुख्यतः स्वाधीनता, नियमन
और स्वतंत्रता की चर्चा की गई है।
स्वाधीनता ---- यदि मनुष्य स्वाधीन है वही स्वतंत्र है जब तक बच्चा स्तन पान करता है तब तक खुराक सम्बन्धी पराधीन है। जब से खाने लगता है तब से वह अपनी माता से स्वाधीन हो जाता है तब से उसके समक्ष पोषण के साधनों की विविधता बढ़ती है और उसके सामने पसन्दगी की विशालता खिलती है।