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________________ ५-त्राटक करना, शिक्षक को चाहिये वह बच्चे को अपने सामने विठला दे। उस समय सर्वत्र शान्ति होनी चाहिये बच्चे के शरीर को अत्यन्त स्थिर रखने के बाद शिक्षक तीन और एकाग्रह दृष्टि से बच्चे की आंख देखे । बच्चा शिवक की दृष्टि में हटने लगेगा, भागेगा, चिल्लायेगा अथवा भांखें बन्द कर देगा शिक्षक को धैर्य पूर्वक बैठाना चाहिये बच्चा जब फिर मांख खोले तब प्रयोग पुनः जारी करना चाहिये । आखिर कई महीनों बाद भांख स्थिर होगी और बच्चा उसका उपयोग करना सीखेगा। जब बच्चे की आंख स्थिर मालूम हो तब उसके पास तरह २ के रूप रंग के पदार्थ रखे जाय और उनके अन्तर व्यवस्थित तौर पर रक्खे जाय । रंग के ज्ञान के लिये नीचे का साहित्य काम में लाया जाता है: १-अन्धेरा कमरा जिसमें रंगीन काच की खिड़की हो । २-रङ्गीन काई, रङ्ग बिरङ्गी रीबन तथा संगमरमर की तख्ती इन साधनों को जोड़ कर जमाये जाते हैं कारण समधारणता से रङ्ग की शिक्षा शुरू होती है। ३-घर में काम में पाने वाले मिन्न २ रंगीन पदार्थों का परिचय । रूप की शिक्षा देने के लिये नीचे लिखे हुए साहित्यों का परिचय कराया जाता है: १-गोल, चौरस अथवा त्रिकोन जैसी माकति । २-तरह २ के धन (घनाकृति)। साधन की एक जोड़ी शिक्षक के पास रहे और एक बच्चे के पास रहे। जब शिक्षक इन से काम करता जाय तब बालक उसी माफिक करना सीखे। शिक्षक तरह २ के आकार जोड़ता है, वह घर बांधता है, बंगला बनाता है मादि बच्चा उसी के अनुसार कार्य करता है। मृढ़ बालकों को ये खेल बहुत कठिन मालूम होते हैं परन्तु इन खेलों से उनकी आंख शिवित होती हैं और वे बुद्धि प्रदेश में जाते हैं।
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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