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पद्धति का रहस्य उसी के सिद्धान्तों से मालूम हो सकता है इतना ही नहीं परन्तु इसके ज्ञान से मोन्टीसोरी पद्धति के साधन बखूबी समझे जा सकते हैं।
सेगुइन मूढ़ और साधारण शक्तिवाले बच्चों में सिर्फ इतनी ही भिन्नता बताता है कि शिक्षा के अभाव से मूढ़ बच्चों की शक्ति अविकशित रहती है। इससे जिनकी शक्ति समधारण है उनके शिक्षा के लिये संगुइन के साधन स्वयं शिक्षण देने वाले हैं। सारणतः मृढ़ बुद्धि के बच्चों को अपने हाथ पैर का उपयोग करना नहीं आता है इतना ही नहीं वे समतोल खाना पीना भी नहीं जानते हैं कि उनके शरीर में शीघ्रता से काम करने की स्फूर्ति नहीं होती है अक्सर भवि कास की वजह से तथा अक्सर अभ्यास की वजह से ऐसा होता रहता है। इसलिये संगुइन ने कई तरह की कसरतें निकाली हैं और कसरत के साथ २ संगीत को स्थान दिया है। उनको शुरू ही शुरू में कमरत श्रप्रिय मालूम होती थी और उनकी आखों से अश्रु गिरते थे । परन्तु पीछे से वह उनको अच्छी मालूम हुई । छोटे समधारण बच्चों के शरीर अच्छे होते हैं अतएव उनके शरीर में मूढ़ बच्चों के सदृश कमी नहीं होती है तो भी उनकी गति में और दूसरी सब क्रियाओं में सम्पूर्ण काबू नहीं होता है इसका कारण मात्र यही है कि उनके ज्ञानतन्तु बराबर शिक्षित नहीं होते हैं । इसलिये मोन्टोसोरी ने तरह २ की कमर सेगुइन की कसरतों में से ली है लकीरों में चलने का खेल सीढी २" ४४" के पाटये पर चलने का खेल, गोलाई पर संगीत के साथ चलना, भूला आदि तरह २ की कसरतों का अनुकरण करना आदि का मूल सेगुइन में है। कहने का सारांश यह है कि उसने शारीरिक शिक्षा के प्रकरण का बहुत हिस्सा सेगुइन के सिद्धान्तों के अनुसार ही लिया है । मूद बच्चों में उनके क्रियातन्तु जो मंद अथवा मृत प्राय होते हैं उनको चैतन्य अथवा जीवनमय करने के हैं । अतएव समधारण बच्चों को इन्हीं क्रियातंतुओं की मात्र समतोलता से काम करते सीखाना है ।
३ इन्द्रिय शिक्षा - इस विषय में मोन्टोसोरी ने सेगुइन के पास से बहुत कुछ लिया है इसको ठीक २ स्पष्टता से समझने के लिये सेगुइन की इन्द्रिय शिक्षा की रीति को देखना जरूरी है इसके बाद मोन्टीसीरी के इन्द्रिय शिक्षा के प्रकरण को देखने से मालूम हो सकेगा कि मोन्दोसोरी ने सेगुइन को पद्धति का कितना लाभ उठाया है।