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________________ ( * ) धंधे में प्रवेश सहन नहीं कर सकता था - मेरीया मोन्टोसोरी ने पहिले तो शिक्षक के धंदे में प्रवेश होने का विचार किया परन्तु उस समय की प्रचलित शिक्षा के ढङ्ग में उसका मन नहीं लगा । अतएव उसने शीघ्रमेव जनियरींग का अभ्यास करना शुरू किया । उस शाला में वह अकेली ही विद्यार्थिनी थी अतएव उसको विद्यार्थियों के शामिल रह कर विद्याभ्यास करने में अनेक दिक्कतें उठानी पड़ती थी । सुबह उसकी माता शाला में पहुंचाने जाया करती थी और शाम को उसका पिता उसकी शाला से बुला लाता था । वर्ग में उसको विद्यार्थियों से अलग बैठना पड़ता था । और उस दरवाजे पर पुलिस चौकी की व्यवस्था होती थी । परन्तु इन सब मुश्किलियों का वह कोई विचार नहीं करती थी कारण कि उसका लक्ष गणित-शास्त्र के अभ्यास में था । शाला तो एक मात्र साधन था । वह इस शाला में रह कर एक समर्थ गणितशास्त्री हो गई। समय के बीतने के साथ उसका मन डाक्टरी व्यवसाय की ओर झुका । इटली में उन दिनों में डाक्टरी अभ्यास के लिये स्त्री विद्यार्थिनी मेरीया मोन्टीसोरी पहिली ही थी । लोकमत उसके विरुद्ध था तो भी विद्यार्थियों की शाला में अनेक कठिनाइयों के होते हुए भी उसने अपना अभ्यास जारी रक्खा और वैद्यक के लम्बे और कठिन अभ्यास के बाद रोम के विद्यापीठ की एम. डी. की उपाधि प्राप्त की । उपरोक्त पदवी प्राप्त करने के पश्चात् सन् १८६७ ई० में रोम में सिर-दर्द निवारणार्थ अस्पताल में सहायक डॉक्टर के तौर पर उसकी नियुक्ति हुई । सुधरे हुए देशों की जोड़ में आने को इटली अभी प्रयत्न कर रहा था। यहां दूसरे देशों के माफिक संस्थाएं अभी स्थापित होती जाती थीं। इस स्थिति में शीघ्रमेव व्यवस्था करने के लिये उपरोक्त अस्पताल में पूर्ण बेवकूफों के साथ २ मूढ और मन्द बुद्धि वाले भी रखे जाते थे । युवान और उत्साही डॉक्टर मोन्टीसोरी ने बालकों के व्याधि का खास अभ्यास कर इस विषय में विशेष प्रवीणता प्राप्त की । इस पागलखाने में जाते वक्त उसका ध्यान मन्द बुद्धि वाले और मूढ़ बालकों की ओर, जो कमभाग्य से बेवकूफों के साथ रक्खे जाते थे, आकर्षित हुआ । पचास वर्ष पहिले से सेगुइन द्वारा योजी हुई मन्द और मूढ बुद्धि के बालकों को सुधारने की पद्धति का उसने अभ्यास करना शुरू किया। सेगुइन के
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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