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________________ ( २२ ) बहुत से पति स्त्री को धिक्कार देना सीखे हैं। हे मूर्ख कन्या ! प्रेम के तत्व का स्मरण रख । लग्न करने वाले पुरुष ! तुमको भी कुछ २ बातें कहने की हैं। तुम जिस प्रेम से आकर्षित होकर किसी स्त्री के साथ विवाह करने को तैयार हुए हो वह प्रेम वास्तविक में पवित्र अनुराग हो तो तुम उस स्त्री के मान, सुख व शान्ति पर नजर रखो। तुम जो उसकी सरलता और प्रेम को देख कर उसकी तरफ ऐसा व्यवहार करो कि जिससे जिस ज्ञाति में वह है और जहां उसको रहना पड़ता है उस ज्ञाति में उसको कलङ्क न लगे और लोक की निन्दा सहन न करनी पड़े और न मन की अशान्ति भुगतनी पड़े। यदि ऐसा है तो तुम मूर्ख हो अथवा बद मिजाज हो । तुम्हारा वह प्रेम सच्चा प्रेम नहीं है। जहां सच्चा प्रेम है वहां लोग विचार करते हैं कि मुझे क्लेश हो तो भले हो परन्तु उसको मुखी करना । मुझे कठिनाई पड़े तो भले पड़े लेकिन उसको न हो । मुझे हानि हो तो मने परन्तु उसको लाभ हो । अगर ऐसा नहीं करता है तो उस पुरुष को धिक्कार है। जिस में अपने आपको वश में रखने की जरा भी शक्ति नहीं है, उस पुरुष का चरित्र कौड़ी की कीमत का भी नहीं है। ___जो एक दूसरे में श्रद्धा रखना नहीं जानते, एक दूसरे पर भरोसा नहीं रखते, एक दूसरे को हानि लाभ को नहीं देखते, एक दूसरे के कल्याण में धीरता, साधुता, व धर्म आदि में अपने संयम में नहीं रख सकते। वह विचार विना का लघुचित्तवाला कुशिक्षित और दुर्बल प्रकृति का पुरुष और स्त्री जिस ज्ञाति में है वे जाति के कलंक हैं। ____ लग्न अति पवित्र है, महान् है। इस कार्य में जो लघुचित्त वाला होकर प्रवृत्त होता है उनका ईश्वर पर विश्वास नहीं और धर्म पर अश्रद्धा नहीं होती है। गृहस्थाश्रम पुरुष महात्मा हो सकता है तो फिर स्त्री भी महात्मा हो सकती है ? पुरुष महत्व की कक्षा पर है तो स्त्री भी क्यों न महत्त्व की कोटि पर होनी चाहिये । स्त्री ने ऐसा कौनसा दोष किया कि वह महत्त्व की कोटि पर नहीं जा सके क्या वह मनुष्य जाति में नहीं ? क्या वह चरित्र पात्र नहीं है? क्या उसको
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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