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पनि के गृहइ-कार्य में पत्नी - वत्सल पति भी यथा अवकाश मदद देने को तैयार रहता है यह उसका कर्तव्य और भूषण है । पत्नी की बीमारी की हालत में पति उसकी जितनी सेवा शुश्रूषा करें उसको सुखी निरोगी और निश्चिन्त बनाने में जितनी मेहनत करें उतनी कम है। प्रेम और स्नेह श्रद्धा की कसौटी समय पर होती है। पति की बीमारी में पत्नी उसकी सेवा में जिस तरह तन्मय बन जाती है वैसे ही पत्नी की बीमारी में पति को उसकी सेवा शुश्रूषा में सब तरह से तन्मय बन जाना चाहिए और यह उसका महान् कर्तव्य है ।
साध्वी पत्नी की प्रिय में प्रिय वस्तु एक पति-प्रेम है उसको प्राप्त करने और उसको कायम रखने के लिए वह सदा प्रयत्नशील रहती है। साथ ही साथ पति का भी यह महान् कर्त्तव्य है कि वह हृदय से अपनी पत्नी का उतना ही आदर रखे और उसको सदा प्रसन्न रखने का ध्यान रखे ।
पत्नी की तरह अपने हार्दिक प्रेम का यथा सम्भव सब से बड़ा प्रमाण पति ही दे सकता है । वह उसको अपना समय दे, व्यापार धन्धा या नौकरी अथवा दूसरे कार्य से जो समय मिले उस समय को उसे अपने परिवार में बिताना चाहिए यानी उस समय में अपने परिवार को ज्ञान गोष्ठी का आनन्द तथा लाभ पहुँचाना चाहिए। उन मनुष्यों के लिए क्या कहा जा सकता है कि जो अपने बचे हुए समय में अपनी संगत का लाभ अपनी पत्नी या परिवार को न देकर दूसरी जगह भटका करते हैं कि जो आधी रात तक दूसरों के साथ गप्प सप्प लगाते हैं और सिर्फ भोजनादि के लिए घर आते हैं उनके लिए घर घर नहीं कहा जा सकता परन्तु उसको वीसी या उतारा कह सकते हैं। पति, पत्नी का या घर का जिस तरह मालिक है त्यों वह घर का शिक्षक भी है। अतः उसकी फुर्सत के समय में अपनी पत्नी और बाल बच्चों को संगत का लाभ देना चाहिए । सुशिक्षित पति की सोहबत में घर के परिवार को ज्ञान और बोध प्राप्त करने में जो आनन्द आता है वह आनन्द और किसी भी तरकीब से नहीं आ सकता । परिवार के बीच में पति द्वारा प्रेम पूर्वक की जाने वाली मनोरंजक ज्ञान-गोष्ठी घर में जो उजाला देती है वह अपूर्व आनंददायक होती है । पत्नी तथा बाल बच्चों को अपने गृह स्वामि के पास से अपने मन तथा श्रात्मा की खुराक मिलते ही उनका अन्तःकरण प्रसन्न हो जाता है और हृदय प्रफुल्लित हो जाता है ।