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________________ उद्भट फैशन की बुरी दवा से नारी जाति की बहुत खराबी हो रही है दसरे अपने अंग दिख सकें ऐसे बारीक वस्त्र पहिनने में मानंद समझती हैं वहां पर नारीधर्म की उज्ज्वलता कितनी समझी जा सके ? स्त्री का सच्चा भूषण शील-धर्म है उसके आगे दूसरे सब आभूषण तुच्छ हैं। पवित्रता, लज्जा और संयम ये अलंकार ऐसे सुन्दर हैं कि मोटे कपड़े से ढके हुए शरीर को भी चमकीला बना देते हैं और इससे प्रफुल्लित आत्मबल के आगे मनुष्य तो क्या देवता भी अपने मस्तक झुका देते हैं। सादगी में जो मजा और धर्म सिद्धि है वह उद्भटता में नहीं है । सादा खाना सादा पहिनना और सादा जीवन यह कैसा सुन्दर है । मोटा खाना, मोटा पहिनना और मोटा काम करना यह कितना मजेदार है। जीवन निर्वाह के योग्य प्राप्त करने में जहां कठिनता मालूम हो वहां गृह देवियों को फैशनेबल साडी और आभूषण पूरा करने में पति देवता को लोही का पानी करना पडता होगा। इसतरह पति को तकलीफ में डालना क्या सुशीला पति भक्ता पत्नी को शोभा देता होगा परन्तु जहाँ दुर्बल मन के पति को अपने धन के शरीर के अथवा आबरू के बजाय भी अपनी बीबी को उद्भटता से शृंगारने में रस पडता हो और इसमें वह अभिमान लेता हो तो फिर दूसरा क्या कहने को रह जाता है। फैशन की बुरी आदत पडने से धन बहुत खर्च हो जाता है और उससे नैतिक शरीर पर बहुत आघात पड़ता है और साथ ही साथ देश की पराधीन दशा को बहुत सहायता मिलती है। इस पर युवक मित्रों को बहुत ही आवश्यना है कोई विचारवान पुरुष देख सकता है कि देश की आर्थिक स्थिति बहुत ही दीन हो गई है निस्संदेह देश की अच्छी पैदायश का माल विदेशी ले जाते हैं तब देश के नसीब में सिर्फ छाछ का पानी रह जाता है ऐसी खराब स्थिति में फैशन आदि में मस्त रहना मूर्खता से क्या अधिक गिना सकता है ? आय का बिलकुल साधन न हो और विलास प्रियता न छोडी जा सकती हो तो इसका परिणाम सिवाय लूट मचाने के क्या हो सकता है ? अथवा दूसरे का माल हजम कर जाने का इरादा होता है निस्सन्देह एक बुराई से हजारों बुराईयां उत्पन्न होती हैं और एक सीढी चुक जाने वाला बिलकुल नीचे गिर जाता है । आवरू-इजत को सही सलामत रखना यही बड़े से बडा शृङ्गार है। भाबरू न रहे ऐसी फैशन या विलास सामग्री पर धूल डालना बेहतर है जिसकी
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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