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( १९६) हीराकप का पानी और हर्रा के द्वारा बहुत सहज उपाय से काला रंग रंगा जा सकता है। परन्तु यह रंग पका नहीं बनता है। हीराकष की जगह लोहे के पानी से कपड़े रंगने पर अच्छा पका रंग कपड़े पर चढ़ाया जा सकता है। हिन्दुस्तान के रंगरेज जिन पुराने नियसों से लोहे का पानी बनाते हैं, वह बहुत अच्छा और सुगम उपाय है। यहां पर उनकी प्रचलित रीति लिखी जाती है:
गुड़ (तम्बाकू का गुड़) १ सेर, पानी १० सेर, लोहे के टूटे-फूटे बर्तन, परेक इत्यादि १ या २ सेर । गुड़ को पानी में घोल कर एक मिट्टी के बर्तन में रखिये । लोहे के टुकड़ों को एक कपड़े में बांध कर इस गुड़ के पानी में भिगो देवे और घड़े को एक पतले कपड़े से ढांक देवें । यदि लोहे पर मोर्चा पड़ गया हो तो उसे गरम करके पीट लेने पर मोचर्चा छूट जाता है। पुराने टीन के डिब्बे या कनस्टरों को काट कर छोटे २ टुकड़ों से काम चल सकता है । मोची लगा इमा लोहा व्यवहार में नहीं लाना चाहिये ।
पांच-छ: दिन बाद गुड़ सड़ कर सिरका बन जाता है। सिरके में अधिकांश असीतिकाम्ल ( Acetic acid) रहता है। इस अम्ल ( Acid ) और लोहे के रसायनिक संयोग से लोह-असीतेत ( Acetate of iron ) बनता है। बीच २ में इन्हें एक लकड़ी से अच्छी तरह हिला देना बहुत जरूरी है ।
रंगने की रीति:हरे का चूर्ण ४ छटांक-८ आउंस; पानी ५ सेर-१ गैलन ।
आध घण्टे तक चूर्ण को पानी के साथ उबाल कर सत बना डालें। इस सत में आध घंटे तक कपड़े को भिगो कर निचोड़ डालें । कपड़े को सुखा कर लोहे के पानी से रंगे ।
लोहे का पानी ५ सेर-१ गैलन ।
इसमें आध घण्टे तक कपड़े को भिगो कर सुखा डालें। एक दिन (२४ घंटे) बाद फिर इसी रीति से हरे के सत और लोहे के पानी के द्वारा