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ॐ
कालशाह - यशल्हा और
दिल्ली पति लाउद्दीन खिलजी का युद्ध
(लेखक शिवनारायण यशलहा - इन्दौर)
खाज चतुरंग सैन्य मीर सब तुरंग वदि,
वीर "कदमा" जंग जीतन चळत है ।
"शिव" यों कहत नाद वृहद बगारन के,
नदी नद तक वीर रेक रक्त नीरव के एक केक बेकमेल कम में,
गणक के नाचते से उसका है
भरनी ते घरि बड़त सूरज व पहोंच जात,
चालन के हासन ते जवागार इक्त है ॥२॥ झण्डे पहराने बहाने बद हाथिन के
दराने पकाने दाब या देश बेकन के /
गिरिधर थाने प्राम गिराने सुनि
बाजत रणमेरी कालशाह मंत्रिपेश ब्रे ॥३ दामिनी दमक बेगि सुकेका बीरन के,
भाडे चढत जिमि चमक चिनगारी के /
देखि देखि बवनम की हरमन के हुक उठत,
फाटत कब्रेजा हाक देखि जू भगाशी के ॥ ४ ॥ चालत है खन और कमान दीर बाचन के,
होती कठिनाई सुरचान हू की भाड़ में।
कालूशाह साड़ी समय कीर बेगि हल्ला कियो,
कायर के कलेजा कंपे छिपे पहाड़ खाड़ में || ५ ॥ मूंडन पेसाब देते शिवजी का नाम लेते,