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________________ ( १४४ ) ॐ कालशाह - यशल्हा और दिल्ली पति लाउद्दीन खिलजी का युद्ध (लेखक शिवनारायण यशलहा - इन्दौर) खाज चतुरंग सैन्य मीर सब तुरंग वदि, वीर "कदमा" जंग जीतन चळत है । "शिव" यों कहत नाद वृहद बगारन के, नदी नद तक वीर रेक रक्त नीरव के एक केक बेकमेल कम में, गणक के नाचते से उसका है भरनी ते घरि बड़त सूरज व पहोंच जात, चालन के हासन ते जवागार इक्त है ॥२॥ झण्डे पहराने बहाने बद हाथिन के दराने पकाने दाब या देश बेकन के / गिरिधर थाने प्राम गिराने सुनि बाजत रणमेरी कालशाह मंत्रिपेश ब्रे ॥३ दामिनी दमक बेगि सुकेका बीरन के, भाडे चढत जिमि चमक चिनगारी के / देखि देखि बवनम की हरमन के हुक उठत, फाटत कब्रेजा हाक देखि जू भगाशी के ॥ ४ ॥ चालत है खन और कमान दीर बाचन के, होती कठिनाई सुरचान हू की भाड़ में। कालूशाह साड़ी समय कीर बेगि हल्ला कियो, कायर के कलेजा कंपे छिपे पहाड़ खाड़ में || ५ ॥ मूंडन पेसाब देते शिवजी का नाम लेते,
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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