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________________ (१०८) (१७) विमलवसिह (विमलशाह के जैन मन्दिर) (१८) वस्तुपाल तेजपाल के जैन मन्दिर व अन्य मन्दिर, मसजिद, वैद्यशालाएं आदि । (१६) वस्तुपाल तेजपाल की वजह से सब महाजन ज्ञातियों में देशों के भेद । (२०) वस्तुपाल तेजपाल के दान की उदारता हिमालय से कन्या कुमारी तक । (२१) धनाशाह (नांदिया निवासी) का राणकपुर का जैन मन्दिर . व उसका इतिहास । (२२), प्राग्वद् ज्ञातीय संघवी सहसा सालिग का बना हुआ अचलगढ़ का चौमुखीजी का जैन मन्दिर व उसका संक्षिप्त वर्णन । (२३) सिरोही का चतुर्थमुखाय ऋषभदेव का जैन मन्दिर और ....उसके निर्माता।... (२४) पौरवाल समाज की प्रगति और खंबात, बीलीमोरा, भरुच और सूरत के बन्दरों की उन्नति । (२५) चन्द्रावती में पौरवाल की संघ व्यवस्था। (२६) पोरवाल समाज का संसार व्यापी व्यापार । (प्राचीन) (२७) पोरवाल झाति के स्वतंत्र जहाज उनका निर्माण व व्यवस्था । (२८) पौरवाल ज्ञाति की व्यापार में प्रतिस्पर्धा होने पर भी उन्नति के शिखर पर। (प्राचीन) . (२६) पोरवाल ज्ञाति के भारत भर में सामान तैयार करने के कारखाने । (प्राचीन) (३०) पौरवाल ज्ञाति के वाणिज्य व्यवसाय के स्वतंत्र विद्यालय । (प्राचीन) (३१) पौरवाल ज्ञाति की स्पज्ञता । (प्राचीन) (३२) भारत के हस्तलिखित भंडारों को स्थापित करने में पौरवालों का हाथ ।
SR No.541510
Book TitleMahavir 1934 01 to 12 and 1935 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size14 MB
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