________________
दम्पती धर्म आजकल अक्सर गृहस्थ-जीवन कलह-पूर्ण और प्रशान्त देखा जाता है इसका मुख्य कारण विवाह-संस्कार से अनभिज्ञता है और यह अयोग्य विवाह का परिणाम है। योग्य लग्न पद्धति के विषय में पूर्वाचार्यों ने बहुत कुछ कहा है
और वह सब पुस्तकों में हो रह जाता है। आज विचित्र साढवाद ने समाज को घेर लिया है और उसके परिणाम स्वरूप गृहस्थ संसार की जो दुर्दशा होनी चाहिए वह हमारी आँखों के सामने साफ साफ नजर आ रही है। धर्माचार्यों व महापुरुषों के बताये हुए गृहस्थ धर्म के संस्कारों में विवाह संस्कार यह एक रहस्य पूर्ण संस्कार है जिसका यथा विधि पालन किया जाय तो गृहस्थाश्रम नि:सन्देह सुखसम्पन्न हो सकता है।
विवाह यह मौज शौक की चीज नहीं है परन्तु यह गृहस्थों के लिए एक धार्मिक संस्कार है और वह ईश्वर की सादी से प्रतिज्ञा पूर्वक किया जाता है। स्त्री बराबरी के दर्जे पुरुष का आधा अंग है। यह एक कपड़ा नहीं है कि मन नहीं माना तो उतार कर फेंक दिया जा सके; स्त्री, पुरुष की अर्धागिनी, सहचारिणी धर्म पत्नी है। इन दोनों प्राणियों ने परस्पर एक दूसरे के साथ उचित कर्तव्य पालन करने की परमेश्वर की साक्षी से प्रतिज्ञा की है। ___ उत्तम शिक्षा की कमी तो समाज में शुरू ही से है उसमें फिर स्नो वर्ग पर तो अज्ञान का बड़ा बादल छाया हुआ है। इस तरह अज्ञान की प्रांधी में पुरुष प्रायः स्त्री को सिर्फ अपनी क्रीड़ा वस्तु समझ कर बैठे हैं। यह दुर्दशा कर्तव्य ज्ञान नहीं होने की वजह से हो रही है और इसके परिणाम स्वरूप बेजोड़ लन, बाल लग्न और वृद्ध लग्न की धूम मची हुई है और ऐसे बनाव भी बनते जाते हैं कि कन्या को या बालक को यह खबर नहीं होती है कि विवाह क्या है ? विवाह का उद्देश्य क्या है ? तो भी ऐसी हालत में उनको विवाह की बेड़ी से जकड़ दिये जाते हैं। जिसके साथ सारी जिन्दगी रहना है उसका शारीरिक बन्धारण क्या है, वह रोगी है या स्वस्थ, सदाचारी है या दुराचारी ? ये सब बातें जानने का अधिकार कन्या को नहीं है। मा बाप कन्या को जिसके साथ जोड़ दें उसके साथ उसको बिना छू छा किये जाना पड़ता है । उसी तरह कुमार को भी जिसके साथ उसका सम्बध होने वाला है उसके विषय में उसको भी पहिले से कुछ भी