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________________ -७ ) (१७) गम्भीर (२१) उत्तम जन माननीय .(१८) धीर (२२) सर्व ज्ञान श्लापनय (१६) उदार (२३) शान्त (२०) निर्विकार ( २४ ) ऋषि पुत्र परनारी सहोदर . धनाशाह नांदिया निवासी ने राणकपूर का मन्दिर बनवाया। पुराणे गोत्र- चौधरी, काला, धनगर, रत्नावत, धनौत, माजारत, डंबकरा, भादलिया. कमलिया. शेठिया, उदीया भभेड़, भृता फरकया, मलवरीया मंडीपरीया, मुतिया, घाटिया. गलिया भैसोत, नवेपरथा. दानधरा मेहता खरडिया स्वयंप्रभसूरी ने पद्मावती में जो पौरवाड़ बनाये उस में के शुद्ध बीसा पोरवाल पपद्यावती पौरवाड़ कहलाते हैं । हरीभद्रसूरी ने उन में नीचे माफिक जैन बना कर शामिल किये(१) जाङ्गड़ा (२) सोरठिया ( ३ ) कपोल कराते हैं। । विवाह संस्था समाजरूपी मकान की बनावट विवाह संस्था पर निर्भर है अतएव किसी भी समाजहितेषी का ध्यान उस ओर आकर्षित होना स्वाभाविक है। समाज को जीवित रखने के लिये विवाह संस्था में सुधार करने की सख्त आवश्यका अधिक संख्या में दिन ब दिन बाल विधवाओं का होना ही विवाह संस्था की खराब स्थिति का मर्मवेधक प्रमाण हैं "बेचारी के तकदीर में विधवा होना लिखा था वह कैसे मिट सकता है ?" इस तरह के उद्गार निकालनेवाले भोले मनुष्य अकान्त भाविभाव वाद के पंजे में फँस जाते हैं और एकान्त दर्शन की विराधना करते हैं उनको चाहिये कि वे अपने अंदर की अयोग्यता की भोर ध्यान दें उपयोग बिना प्रमाद से चलन से जीव मर जाते हैं तो भी उसका पाप लगता है अतएव ध्यानपूर्वक-उपयोग पूर्वक हरएक प्रवृति का जिसतरह फरमान है उसी माफिक विवाह समारंम भी ध्यान पूर्वक होना जरूरी है । यदि अचित परीक्षा पूर्वक विवाह समारंभ हो तो विधवाओं की भयंकर संख्या न हो हम
SR No.541505
Book TitleMahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size11 MB
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