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आबू पर जिस समय विमलवसहि का निरमाण हो रहा था। तब वहां का अधिष्टायक देव दिन का बना हुआ काम रात्री को गिरा देता था। तब विमलशाह एक रात को स्वयं पहरे पर बैठा कि गिगने वाले को पकहूं । देव के
आते ही उसने ललकार बताकर एकदम उसको पकड़ा तब उसने मांस का बली मांगा तब विमलशाह अपनी कमर से तलवार निकाल कर मारने लगा। तब वह कॉप कर भाग निकला। फिर उसके भय के मारे उपद्रव करना बन्द कर दिया। विमलशाह की वीरता के बारे में एक कवी ने कहा है
"रणि राउलि शूरा सदा देवी अम्बावी प्रमाण ।
पौरवाड़ परगटमल मरणेन मुके मांण" ॥ इसी प्रकार १३ वीं सदी में वीर नर वस्तुपाल तेजपाल हुए हैं जिनकी वीरवा, परोपकारता, उदारता, रूप कीर्ति जगत् में विख्यात है। इन वीरों ने भनेक संग्राम में सब तरह से विजय प्राप्त की।
इनकी उदारता का थोड़ा सा नमूना यहां पर दिया जाता है५५०४ जिन मन्दिर बनवाये । २०३०० पूराने मन्दिरों का जिर्णोद्धार कराया । १२५००० नये जिनबिम्ब बनवाये जिसमें १८ कोड़ खर्च किये ।
३ ज्ञानभंडार स्थापित किये। ७०० दांत के सिंहासन बनवाये । ६८८ पौषधशालाएँ बनवाई। ,५०५ समोसरण के चन्दरवे बनवाये । २५०० घर मन्दिर बनवाये । २५०० काष्ट रथ बनवाये ।
२४ दांत के रथ बनवाये ।
१८ क्रोड़ पुस्तकें लिखवाई। - ७०० ब्राह्मणों के लिये मकान बनवाये । . ७०० दानशालाएँ बनवाई। ३००४ विष्णु भादि के हिन्दु मन्दिर बनवाये ।