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________________ (१) ह लेखनी हाथ में ली है इसलिये चीर नीर न्यायेन सज्जन वर्ग इसका अवलोकन करेंगे ऐसी आशा है । . मेरे कहने का खास तात्पर्य यह है कि आज भी हमारे समान में अपने तीर्थों के लिये जितना पूज्य भाव और बहुमान होना चाहिये उतना अवश्य है। तीर्थ मार्ग में द्रव्य खर्च आदि से जितनी उदारता दर्शानी चाहिये उतनी अवश्य है। तीर्थ यात्रा में मक्ष अभक्ष पेय अपेय और बाह्यचारित्रादि से जैसी शुद्धि रखनी चाहिये उतनी अवश्य है और तपजपादि दैनिक क्रियाकाण्ड भादि से दैहिक कष्ट जितना उठाना चाहिये वैसा भी अवश्य है, इत्यादि बातें मैंने यात्रियों में अपने नजरों से देखी हैं इसमें अतिशयोक्ति नहीं है। क्योंकि हेमन्त ऋतु जैसे शीत काल में जब कि पुरुष और स्त्रियं अपने निवास स्थानों में प्रातःकाले बिस्तरों में से मुंह भी नहीं निकालते हैं तब तीर्थ भूमि पर पहर रात्रि पहिले निद्रा का त्याग कर अहन्त भगवन्त को जोर २ से नमस्कार करते हुए तथा करेमिभन्ते का पाठ उच्चरते हुए नजर आते हैं, हिम सम शीतल पर्वत पर क्या वृद्ध क्या बालक रात्रि के अन्त भाग में हाथ में लाठी लिये हुए उंचे नीचे साँस से हा हा करते चढ़ते हुए नजर आते हैं, त्रिय चार २ बजे उठकर मङ्गल प्रभाति गीतों से गगन मण्डल को गुंजाती हुई नजर आती हैं, बालक वृद्ध सब उपवासादि नाना प्रकार के तप करते हुए नजर आते हैं और भण्डारादि में पैसे जमा कराने के लिये येलियों के मुंह खोल कर छन २ रुपये बजाते हुए नजर आते हैं जिसका एक प्रत्यच उदाहरण मेरे नजरों से देखा है कि केवल कालिन्द्री संघ के यात्रियों ने पूज्य उपाध्यायजी श्री मंगलविजय नी महाराज के दो घड़ी के व्याख्यान के प्रभाव से श्री सम्मेतशिखर तीर्थोद्धारक फण्ड में रु० २३०००) ( तेविस हजार) देंने की उदारता दर्शाने में विलम्ब नहीं किया अर्थात् उदारतादि अनेक गुण और अनेक प्रवृत्ति में हरतरह से हमारे समाज की अनुकरणीय और अनुमोदनीय है इसमें कोई सन्देह नहीं, परन्तु साथ २ खेद पूर्वक दाना पड़ता है ।के एक त्रुटि हमारे समाज में ऐसी नजर आती है जो सुन्दर देह में नेत्र की त्रुटि के समान है यानी हमारे में विचार शक्ति अथवा चिन्तवन शक्ति का प्रायः विशेष अभाव नजर आता है और उसी कारणवशात् हमारा हर एक कार्य में तन और धन का पूर्ण भोग होते हुए भी आज हमारे जैन समाज की शोचनीय परिस्थिति नजर आती है, मगर जो तन, धन के साथ मन का उपयोग साथ में मिला हुआ होता
SR No.541505
Book TitleMahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size11 MB
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