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(५३) : दर असल समाज की पंचायत का प्रत्येक सदस्य अर्थात् पंच एक सम्मान नीय न्यायाधीश (जज) है । वह न्याय के पवित्र आसन पर बैठ कर उस पदवी को प्राप्त होता है। उस पंच में क्या २ गुण होने चाहिये. उसकी क्या योग्यता होनी चाहिये और समाज में उसका क्या स्थान (दर्जा) होना चाहिये, इस विषय में प्रस्तुत लेख में मैं कुछ शब्द लिखना चाहता हूं। __पंच कैसा होना चाहिये या उसकी योग्यता कैसी होनी चाहिये इसका उल्लेख करने से पहले मैं एक आदर्श न्यायाधीश का उदाहरण लिख देना उचिक समझता हूं।
पेशवा सरकार की राज-सभा (पूना ) में श्रीराम शास्त्री नामक एक बड़ा विद्वान्, निस्पृह और सत्यवादी ब्राह्मण था। यह शास्त्री सब से बड़ा न्यायाधीश माना जाता था। न्याय का ऐसा अनन्य उपासक इस जमाने में ढूंढने पर भी मुश्किल से मिलेगा । वह बड़ा बेपर्वाह, नीतिमान् और धर्मात्मा था। सत्य बात कहने में वह किसी का खयाल नहीं रखता था। जो कुछ होता मुंह पर साफ २ सुनाने में वह किसी से नहीं डरता था। अर्थात् वह जैसा सत्यवक्ता था वैसा ही स्पष्टवका भी था। न्याय, नीति और धर्म अनुसार स्पष्ट बात कहते हुए वह बड़े २ राजधुरन्धरों से भी नहीं हिचकता था। ___ मराठों के इतिहास के अवलोकन से मालूम होता है कि नारायणराव पेशवा का खून हुआ और वह उसके चाचा राघोबा ने राज्यलोभ से प्रेरित होकर कराया। बाद में वह पेशवा होकर पूने की गद्दी पर बैठा। पेशवा सरकार ( राघोबा दादा ) ने आपके इस न्यायाधीश को एक दिन पूछा " महम पेशवा ( नारायणराव ) की हत्या का अपराध मुझ पर लगाया जाता है, इस महान् पाप कृत्य का प्रायश्चित्त ( दण्ड ) क्या है ? पहले मुझे यह भी बताइये कि क्या तुम भी मुझको पेशवा का वधक ( खूनी ) समझते हो"?
.. इस पर श्रीराम शास्त्री ने निडर हो कर जवाब दिया कि "दादा साहब! मेरे स्पष्ट वक्तव्य के लिये मैं श्रीमान् से क्षमा चाहकर कहूँगा कि मैं भी उन लोगों में से हूँ जो श्रीमान् को पेशवा नारायणराव की हत्या कराने वाले समझते हैं। श्रीमान ने राज्यलोभ से प्रेरित होकर ब्रह्महत्या * का महापाप किया है। - * मराठों की पूना की गद्दी पर आनेवाले पेशवा जाति के ब्राह्मण थे और वे प्रधान पदसे कपट से राजपदपर आरूढ हुए थे।
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