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पंच और पंचायत
लेखक-भीमाशङ्कर शर्मा, वकील, सिरोही।
"ब्रह्मज्ञः सत्यसंघः परधनतरुणीनिस्पृहः कर्ममर्म । ज्ञातादातातपाता गणितबहुकलाशिल्पवित् सूत्रधारः॥”
__–'कश्यप-संहिता'
श में कहो या समाज में कहो, पञ्च और पश्चायत अत्यन्त पवित्र द माने जाते हैं। पञ्चायत-पद्धति, एक या दूसरे रूप में, करीब २ RAAH संसार के समस्त समाजों में दृष्टिगोचर होती है। कर्ता और ___ कर्म की तरह पञ्च और पञ्चायत का युगल अर्थात् जोड़ा है। संसार में जितनी पवित्र से पवित्र चीजें या संस्थाएँ हैं, उन सब में पंचायत संस्था अधिक पवित्र है। पंचायत का दूसरा अर्थ सामाजिक स्वराज्य है। पंचायत में बैठने वाले पंच प्रेमभाव से, एकचित्तता से, एक स्थान में बैठ कर न्याय, नीति
और धर्म से समाज के कल्याण का कोई भी कार्य करें, उसका समाज में प्रचार करें, समाज के किसी मार्गभूले व्यक्ति के दोष का हाल दोनों तरफा सुन और किसी भी पक्ष के प्रति रागद्वेष नहीं बताते हुए, निष्पक्ष भाव से दूध का द्ध
और पानी का पानी कर देने वाला न्यायशासन ( फैसला ) उसको सुना देवें, यदि वह शिवा ( दण्ड ) के योग्य हो तो हृदय में दयाभाव को स्थान देकर
और उसको सुधरने का अवसर प्राप्त हो ऐसी शिक्षा सुनावे इत्यादि २ ऐसे कार्य करें जिन से समाज की व्यवस्था भली प्रकार बनी रहे, उसीका नाम है पवित्र पंचायत पद्धति । पंचायत प्रथा का सदुपयोग कर दिखाना यह देश, समाज और ।।