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और हमारी कार्य शक्ति संकुचित हो जाती है इतना ही नहीं परन्तु हमको बहुत लज्जा भी उत्पन्न होती है कारण कि जो मनुष्य अपने कार्य को अंकुश में नहीं रख सकता है उसको स्वीकार करना पड़ता है कि वह स्वयम् अपनी आत्मा का स्वामी नहीं है।
यदि तुम थोड़े मिनटों के लिये भी अपनी सदसद्विवेक बुद्धि के सिंहासन पर से नीचे उतरो और तुम्हारी पाशव वृत्ति को राज्य करने दोगे तो तुम्हारे लिये मामला बहुत भयङ्कर हो जायगा । अक्सर मनुष्य बार २ मिजाज खोदेने से पागल हो गये हैं।
जिस मनुष्य को विश्व के समस्त बलों का स्वामी बनने का जन्म मिला है वह सदसद्विवेक बुद्धि के सिंहासन पर से उतरे और स्वयम् तत्काल के लिये मनुष्य नहीं तथा अपने कार्यों को अंकुश में रखने को अशक्क है तथा नीच तथा हलके काम करता है मर्मघात करनेवाले घात की शब्द बोलता है और सम्पूर्णतः निर्दोष मनुष्य के मगज पर उपहास का उष्ण बाण फेंकता है वह मनुष्य बहुत पतित होता है । जो मनुष्य अपने उत्तमोत्तम मित्र को प्रहार करता है अथवा उसको घातकी शब्दों से मर्मघात करता है वह कितना उन्मत्त है विचार करो।
__ क्रोध यह तात्कालिक उन्माद ही है । जिस राक्षस को जीवन अथवा कीर्ति के लिये आदर नहीं है और जो एक मनुष्य को, उसके उत्तमोत्तम मित्र को जरा भी विचार किये बिना मारने की आज्ञा देता है उसके पंजे में जब तक वह रहता है तब वह अवश्य उन्मच होता है।
बालक अनुभव से जलनेवाली उष्ण वस्तुओं और कटनेवाली लीक्षण धारवाली वस्तुओं से दूर रहना सीखता है परन्तु हमारा रक्त शोखनेवाले और कभी २ दिन के दिन पर्यन्त और कभी २ सप्ताह पर्यन्त हमको अधिक वेदना देनेवाला गरम मिजाज से दूर रखना अक्सर पुख्तवय के मनुष्य भी नहीं सीखते हैं। :: जिस मनुष्य ने योग्य विचार प्रणाली और आत्म संयम की चाबी हस्तगत की है वह अपने शारीरिक शत्रुओं से अपना संरक्षण जिस तरह से कर सकता