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(२८) संजनो ! जैसे भेड़ियों के माथ रह कर केसरीसिंह अपना स्वरूप भूल जाता है निर्वीय और नीच भाव को प्राप्त होता है उसी प्रकार आप भी अपनी जाति को भूल कर अधोदशा को प्राप्त हुए हैं। जरा सोचिए प्रगति कारक शिक्षा के ऐसे जमाने में भी आप कितने पिछड़े हुए हैं ? यह जमाना तो संगठन का है आपस २ में कुत्तों की तरह अपनी जाति से लड़मरने का नहीं है। यह समय तो सभ्य और नागरिक बनने का है असभ्य और मूर्ख जड़ बनने का नहीं है, इज्जत और नीतिपूवर्क धन इकट्ठा करने का है अपमानों को सहन कर के अनीति पूर्वक येन केन प्रकारेण धन बटोरने का नहीं है। इसलिये अपनी अधोगति को पहिचान कर बुद्धि पूर्वक विचार करो धर्म पूर्वक उसको रोको, बंद करो सावधान बनो, शिक्षित-सभ्य बनो, आगे बढ़ती हुई सभ्य जातियों का अच्छा अनुकरण करो नहीं तो ध्यान रखिए कि इस जगत् के भविष्य काल में आपकी जाति का गौरव नहीं रहेगा नहीं ! नहीं !! अस्तित्व भी संदिग्ध हो जायगा। .. . युवको ! महाजनो ! आपकी जात में खास करके मारवाड़ जोरामगराप्रदेश में बहुत दोष रुढ़ि और अज्ञानता का प्रवेश है और विशेषतया उस सिरोही स्टेट के पौरवालों में अनमेल भासुरी विवाह का तो इतना अनुचित प्रचार बढ़ रहा है कि ६० वर्ष का मरणोन्मुख बुड्ढा सेठ चालीस २ हजार रुपये देकर भी १५ वर्ष की कुमारिका के साथ विवाह करने में अपने को धर्मात्मा और धन्य मानता है में ऐसी कुमारिकाओं के पति और पिता माता से पूछना चाहता हूं कि क्या यह कार्य कसाई से भी खराब नहीं है ? जो जैन धर्म एकेन्द्रियजीव को दुख देने में पाप समझता है उस धर्म के पालने वाले पौरवाल लोग ऐसे र कार्य करते जरा भी नहीं शर्माते हैं ? उनके मन में जरा भी धिक्कार और दया उत्पन्न नहीं होती है ? युवकों ! आदर्श बनकर समाज के रावसी दोषों को अति शीघ्रता से मिटा दो अन्यथा सारे समाज के ऊपर भारी कालिमा लगती है पाप बढ़ता है और उसी पाप का प्रायश्चित समाज को प्रति दिन भोगना पड़ता है। - युवको ! पोरवाल जाति की अनेक खराबियों कुरूढ़ियों को देखकर मेरा दिल बहुत दुःखी होता है, क्योंकि साधु होने के पहिले मेरा जातीय सम्बन्ध इसी पोरवाल जाति से था, इसलिये जाति प्रेम के वश होकर मैं पुनरुक्किदोष करता हूँ कि आप शिक्षित हजिए, आपके भाई और बहिन बेटियों को सुशिक्षित