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महावीर
(निबन्धमाला) निज देश हित करना सदा, यह एक ही सुविचार हो। प्रचार हो सद् धर्म का, प्राचार पूर्वाचार हो॥
वर्षे १
वीर सं० २४५६, भाद्रपद,माश्विन, कार्तिक,|| अङ्क ५, ६,
मँगसर, पौष सं० १९१० विक्रमी ॥ ७,८वह
ज्ञाति के प्रति दो शब्द (लेखक-शिवनारायणजी पौ० यशलहा, इन्दौर)
हा, क्या करें कैसे रहें, अब तो रहा जाता नहीं ।
- कैसे सहें किस से कहें, कुछ भी कहा जाता नहीं ॥१॥ हा, देव इस दुख सिन्धु में, कहां तक बहाओगे हमें।
- इस रक्त शोषक फूट से, कब तक छुड़ाओगे हमें ॥२॥ कुछ काल पहले आपने, क्या भाव थे हम में भरे।। - हित जाति के सर्वस्व भी, देते रहे पर नहिं डरे ॥ ३ ॥ क्या आज भी हम हैं वही, प्राग्वाट हमारी ज्ञाति है।
. कुछ काल से पहले जिन्होंने, पाइ जग में ख्याति है ॥ ४ ॥ था दण्ड नायक वीर योद्धा, विमल जिसका नाम था।
. धर्मी बर्ती होते हुए भी, युद्ध में अविराम था ॥५॥