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________________ ( 1 ) पाठ में यह सीखा होगा कि अविवाहित रहना श्रेष्ठ है बनिपत के अयोग्य के साथ पाणिग्रहण करना वह सुशिक्षा और सदाचरण के सुसंस्कार के प्रभाव से मर्यादा में रहकर कुमारी - जीवन व्यतीत करना पसंद करेगी परन्तु अयोग्य विवाह में फँसना वह कभी नहीं पसन्द करेगी । "न रत्नमन्विष्यति मृग्यते हि तत् ।" * अर्थात् - 'रत्न दूसरे को ढूंढने नहीं जाता है परन्तु दूसरे रत्न को ढूंढने निकलते हैं ।' धीरज और शुद्ध आत्मभाव के फल मीठे होते हैं और सच्चारित्र का प्रभाव प्रकाश डाले बिना नहीं रहेगा परन्तु शीघ्रतापूर्वक अयोग्य विवाह संस्कार कर देना महा अनुचित है । विवाह संस्कार की योग्यता में मुख्यतः चार बातें देखने की हैं उम्र, तदुहस्ती, सदाचरण और जीवन निर्वाह के योग्य आवक । ये चारों बातें जिसमें हो वह योग्य पात्र गिना जाता है चाहे वह पैसे वाला न हो परन्तु जीवन निर्वाह के योग्य कमाने वाला हो तो इसमें किसी तरह की हरकत नहीं है । सारांश यह है कि उम्र का खयाल, तन्दुरुस्ती और सदाचरण ये तीनों बातें बहुत जरूरी हैं यदि इन तीनों में एक भी बात की कमी है तो वह धन के ढेरों से भी विवाह योग्य नहीं हो सकता जब कि दरिद्री नहीं परन्तु साधारण स्थिति वाला ( निर्वाह योग्य कमाने वाला ) मनुष्य भी इन त्रिगुण शक्ति की वजह से विवाह करने के योग्य है। रहस्य का विचार करते मालूम होगा कि नारी का मुख्य श्राराध्य पद शक्तिबल है उसमें यदि लक्ष्मी का सुयोग मिल जाय, तो फिर सोना में सुगन्ध ही हो जाती है. कन्या के मां-बाप सगे सम्बंधियों को यह तत्व समझ लेना चाहिये ताकि वे समझ सकें कि उनकी स्वयम् प्यारी कन्या का आनन्दाश्रम सिर्फ लक्ष्मी मन्दिर में ही नहीं है किन्तु वह शक्ति मन्दिर है और इस तरह की नारी जाति की नैसर्गिक भावना की तरफ मनन करते वे अपनी कन्या के लिये पैसे वाले घर की तरफ नजर न करें परन्तु सगुण शक्ति को ढूंढना पसन्द करें और * महाकवि कालीदास के कुम्भर सम्भव में 'पार्वती' प्रति ब्रह्मचारी नेपच्छन महादेव की
SR No.541505
Book TitleMahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1934
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size11 MB
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