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विचारने मनन करनेयोग्य देव द्रव्य का उपयोग जैन मन्दिर व मूर्ति के ही काम में आता है दूसरे काम में नहीं आता, इस बात को ख्याल में रखना, भगवान के निमित्त याने पूजा आरती उपधान की माला या दूसरी इन्द्रमाला तथा सुपना आदि की वोली देवद्रव्य होता है।
ज्ञान द्रव्य साधु महाराज को पढाने में अजैन पंडित वगैरा को तथा शास्त्र लिखवाने में ही खर्च होता है ।
साधु-साध्वी खाते का द्रव्य साधु-साध्वी के ही उपयोग में आता है।
श्रावक श्राविका खाते का द्रव्य श्रावक श्राविका की भक्ति वगैरा में काम माता है। .
साधारण खाते का द्रव्य सातो क्षेत्र में काम आ सकता है।
उपर का द्रव्य नीचे के काम में कभी नहीं आता, नीचे का द्रव्य उपर के काम में आ सकता है।
मन्दिर की सार सम्भाल करने वाला तीर्थङ्कर पना पाता है, उसमें याने हिसाब वगैरा में गफलत करने वाला दुःख को पाता है।
मन्दिर उपाश्रय धर्मशाला का काम करना कस्तूरी की दलाली है-, वास्ते उसमें गफलत करना नहीं ।
देवद्रव्य, ज्ञान द्रव्य, साधारण द्रव्य को अपने उपयोगमें लेना नहीं लेवे तो योग्य ब्याज देना चाहिये ।
देव द्रव्य आदि की ब्याज वगैरा से वृद्धि करना चाहिये, आसामीयों का बदला करते रहना, सीलक ज्यादा नहीं रखना, जरूरत पड़ने पर आसामी की योग्यता से वसूल करना ।
झूठ बोलना महा पाप है वास्ते झूठ बोलना नहीं। ..