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આગમત स्वामी की प्रतिमा को बार हजार गाँव हुकम से दिया। इतना ही नहीं लेकिन दूर में वीतभय में रही हुई प्रतिमा के लिये भी दशपुर शहर दिया.
देवद्रव्य की वृद्धि जरूरी है इसीलिए तो आचार्य श्रीमान्, हरिभद्रसूरिजी ने सम्बोध प्रकरण में फर्माया है कि जब तक देवद्रव्य की वृद्धि नहीं होवे तब तक श्रावक को अपना धन नहीं बढाना चाहिए देखिये वह पाठ,
प्रद्योतोऽपि वीतभयपतिमायै विशुद्धधौः। शासनेन दशपुरं दत्वाऽवन्तिकिपुरिमगात् ॥६०४॥
याने निर्मल बुद्धिवाला चण्डप्रद्योतन हुकम :से वीतभय में रही हुई प्रतिमा को दशपुर नगर देकर अवन्त पुरी गया. इस तरह से चैत्यों के लिये गांव दिये जाते थे इससे ही उसका हरण होने का सम्भव देखकर पंचकल्पभाष्यकार ने गांव गौ हिरण्य और क्षेत्र के लिये साधु को प्रयत्न करने का कहा है।
जिणदव्य णाणदव्वं साहारणमाइ दव्धसंगहणं । ण करेइ जइ करइ णो कुजा णियधणप्पसंगं ॥३०॥
याने जब तक देवद्रव्य ज्ञानद्रव्य, और साधारण द्रव्य का संग्रह (वृद्धि) न करे तब तक अपने धन की वृद्धि नहीं करे, इसी तरह से करने वाला ही महा श्रावक तीर्थङ्कर पना पाता है, लेकिन इस विधि से विरुद्ध वर्तन करने वाला याने अपने द्रव्य बढावे लेकिन देवद्रव्यादि नहीं बढावे वह जीव दुर्लभ बोधि होता है, देखिये यह पाठ,
एवं तित्थयरत्तं पावइ तप्पुराणओ महासडो । इय विहीविवरीओ जो सो दुल्लहबोहिओ हवइ ॥३२॥
याने उपर कहे मुजब देवद्रव्य की वृद्धि करने वाला जीव देवद्रव्य की वृद्धि के पुण्य से तीर्थंकरपना पाता है, और ऐसी विधि से विपरीत वर्तने वाला दुर्लभ बोधि होता है।