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________________ पुस्त। 3 गुरु हमकुं माने ? हम गुरुकुं क्यों माने? याचक दाताकु माने. दातार याचककुं माने यह क्या ? गुरु याचक मकान, भोजन-पाणी वस्त्र, दवा, पुस्तक वगैरह चीज गुरु अमारी पास मागते है. हम उनकुं देते है वास्ते वे याचक हम दातार, तो दातार याचक की सेवा करे कि याचक दाचक दातार की सेवा करे ? लेकिन दातार जिसको चीज दे रहा है उससे केइ गुना उस चीजके बदलेमें गुरु दे रहा हैं तो दातार कोण ? यह ख्यालमें आल ! मास्तरको पगार देते हो, मकान, कपडा दाक्तर भी मास्टर के लिये लाना पडता है. तो उपगारी मास्तर या अपन ? यह सब किंमतसे लडकेकुं तैयार किया यह ज्यादा है. अपने दे रहा हैं इससे ज्यादा वह दे रहा है, संसारसें तरनेका रास्ता वे बता रहे है - हम जो दे रहे है वो उसके आगे कुछ हिसाबमें नहिं. गुरुकों इस हिसाबमें माने जाते हे - जिन्होंने पांच आश्रवका त्याग किया हे इस हिसाबसे गुरु माने जाते है, जो आश्रव अच्छे है तो गुरु बेवकार हैं. आश्रव तो बुरे ही है तो सोचके बोलो, पांच आश्रवकुं बुरा समजो- बुरा मानो जब गुरुकी किंमत. पांच आश्रवकुं बुरा न मानो तो गुरुकी किंमत नहीं है. ___इससे यह नक्की हुआ कि पापकुं पाप माननें पहेला पत्थर कहा है, ८२ भेद मान लो तो पहेला पत्थर आया. देखिये ए प्रथम पाना कितना मुश्केल है ? ____इस मुजब मिथ्यात्व, अविरति कषाय योग ए चार कर्मकुं बांधनेका हेतु है. इससे आ संसारके सब जीव कर्मकुं बांध रहा है. तो करम और जन्म परंपरासे चला आता है वास्ते अनादि है. इस तरहसें जीवकुं अनादि कालसें संसारमें भटकना होता है. मनुष्य जीवन प्राप्त करना बडा मुश्केल है. इसमें भी धर्म जो है वो एक अमूल्य रत्न बरोबरी चीज है ए समजना वडा मुश्केल है. तो ए धर्मरत्न क्या उमदा चीज हे उसका विशेष वर्णन ग्रन्थकार आगे कैसे समजायेंगे हे विगेरे जो अधिकार वो आगे सुनायेंगे, ए समजकर जो प्राणी धर्म करता हैं वह यह भव परभव कल्याण मांगलिककी मालाकों प्राप्तकर मोक्ष सुखमें विराजित होता है.
SR No.540003
Book TitleAgam Jyot 1968 Varsh 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgmoddharak Jain Granthmala
PublisherAgmoddharak Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages312
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Agam Jyot, & India
File Size20 MB
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