SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ આગમત अभव्य या मिथ्यादृष्टि देशविरति या सर्वविरति पाता हे वह दुःख दूर करनेसे भाग्यवान होता है नकलीपणा असलीपणे के पीछे हे, नकल असलके पीछे, मिथ्यादृष्टि अभव्योंका चारित्र द्रव्य कहेंगे वह नकली चारित्र मानेंगे, तो असली चारित्र जरुर मानना पडता है. जहां पर देशविरति चारित्र श्रावकपणा हुआ, एक पल्योपममेंसे नव पल्योपम हठान पडता है, साधुपणा में संख्याता सागरोपम हठाना पडता है यह बातसो शोचने जैसी है. श्रावक और साधुपणामें कितना फरक पडता हे, उपशम श्रेणिमें चढ जाय, ११वें गुणठाणे चढ जाय उसकुं वीतराग कहते हैं. चारित्रवाला होगा तो नवगैवेयक तक जाता है. केवलज्ञान पात हे. भाव चारित्र याने ? इसमें भावचारित्र किसकुं कहता है. त्यागकी चोट लगी या त्यागकी रमणता है, उसोका नाम भावचारित्र. गृहस्थपन अच्छा है साधुपतेसे क्या मतलब है ? ऐसे विचारवालोको ते. सम्यक्त्व भी आना मुश्केल है. अपनी अशक्तिके कारणसे मैं लोक नहीं हुं तब उसका नाम क्या हुवा ? भावचारित्र ? जो खरी दीक्षा है यह मेरा असली विश्रामस्थान हे - सच्चा त्याग ख्यालमें है, छोड देना ए सच्चा त्याग कहा जाता है, संसारके आरंभ समारंभ और अविरति अवश्य छोडने लायक है, मैं नही छोडता हुं वह बूरा है इसका नाम तो भावचारित्र हे, इससे अविरतिको छोड़नेमें ही उत्तमता है, ख्यालपर होने पर भी भावचारित्र दो घडी से ज्यादा नहीं होता है, अप्रमत्त में दो घडी से ज्यादा होवे तो केवलज्ञान होता है, साधुपणाको ए बात है.. ____ मूल बात पर अब आते है, साधुपनेमें. और वीतरागपणेमां जितना अंतर हैं इतना अंतर श्रावकपने और साधुपनेमें है शास्त्रमें भी इसके वास्ते कहा है कि देशविरति बाद चारित्र पानेमें संख्याता सागरोपम का अंतर होता है. वैसे वीतरागपने में भी उपशम श्रेणि और श्रपक श्रेणिमें भी इतना अंतर माना है.
SR No.540003
Book TitleAgam Jyot 1968 Varsh 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgmoddharak Jain Granthmala
PublisherAgmoddharak Jain Granthmala
Publication Year1968
Total Pages312
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Agam Jyot, & India
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy