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આગમત महापुरुष चारित्रवान धर्म शुक्ल ध्यान में मशगुल हैं वे अप्रमत्त दशामें श्रेणि प्रारंभ करते हैं वहां मणो बंध निकालते है, किंतु डालता है थोडा और अविरति मिथ्यादर्शनवाला है, जोसकुं सच्ची श्रद्धा भी नहीं है. पापडं पाप माननेके लिये जो तैयार नहीं है. पाप काटने की बात तो दूर रही, मगर पापकुं पाप माननेके लिये तैयार नहीं है. वह थोडा निकालना है डालता है ज्यादह. याने निर्जरा कम और बंध अधिक करता है. मोक्ष मार्ग के माइल स्टोन
सडक पर माइलका पत्थर लगाया है कि अमुक शहर अमूक माइल दूर है, अमदावादसे म्हेसाणा ४३ माइल, आगे चलो ऐसा माइलका पत्थर लगाया है, जिससे राहदारीकुं बडा संतोष होता है विना माइलस्टोनके मार्ग काटना बडा मुश्केल हे. आश्वासन होता है कि इतना आये, इतना रहा, इस आश्वासनसे पाँव जोरदार रहेता है.
इसी तरह महापुरुषोंने मोक्षकी सडक बनाइ है उममें मोक्षके लिये चार माइल स्टोन बनाये. पत्थर पर ध्यान न देवे कि कितना आया कितना रहा! यह तलाश न कीया जाय तो ? चलनेवाला जल्दी थक जाता है। देखनेवाला देख ले कि इतना आया इतना बाकी रहा. तो चलनेमें तेजी आती है
शास्त्रकारोंने मोक्षकी सडकपर पत्थर लगाये, जहां सम्यक्त्व आया वहां ७० कोडाकोडि सागरोपमकी मोहकी स्थितिमेंसे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीयकी ३० कोडाकोडि सागरोपमकी स्थितिमेंसे, उडाकर एक कोडाकोडिकी भी अंदर स्थिति बना दी. मेसाणासे अमदावाद एक सरखी है आप मेसाणा डीसासे, पाटणसे, मारवाडसे या दिल्हीसे चारों तर्फसे आये किन्तु अब मेसाणासे अमदावाद ४३ मील रहा. इधर देखो अब मोक्षनगर एक कोडाकोड स्थिति बाकी है. अब ए पत्थर कौनसा ? यह सोचनेका है ? आगे वढो जहां दूसरा पत्थर आया श्रावकपणेका, वहांपर शास्त्रकारोंने कह दिया कि तुम नव पल्योपमकी स्थिति कम करके आये हो.