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________________ કલ્યાણ : જાન્યુઆરી ૧૯૬૨ : ૮૪૧ कुमुदचंद्र नामक एक विद्वान् ब्राह्मण पंडितके (खंभात) में था। उस समय श्रीमद् राजचंद्र साथ शास्त्रार्थ करके उसको एक शासन प्रभावक मतानुयायीओने जैन सिद्धांतके विरुद्ध अपने नया जैनाचार्य बना दिया। कलिकाल सर्वज्ञ श्रीमद् मतका प्रचार शुरु कर दिया था । अनुयायी. हेमचंद्रसूरीश्वरजीने भी एक दिगंबर आचार्यके वर्गकी संख्या बढ रही थी। इसके बारेमें प. साथ सिद्धराज जयसिंहकी सेवामें शास्त्रार्थ करके पू. वि. कमलसूरीश्वरजी म. ने भी जाहिर विरोध श्वेतांबर मार्गकी सत्यता सिद्ध कर दी और जैन किया था। चातुर्मासके बाद आप नरंसडा पधारे, शासनकी जयपताका विश्व में लहराई दी । महो- और जाहिर व्याख्यान देकर प्रतिकार किया था। पाध्याय श्री यशोविजयजी महाराजने भी बनारसमें उनके व्याख्यानमें आर्यसमाजी भी (मूर्ति पूजाके (काशी) सब पंडितोमें अग्रगण्य होकर एक विरोधी) आते थे। उनके मान्य एक पंडितके दिगंबर आचार्य के साथ शास्त्रार्थ करके जैन साथ मूर्तिपूजाके बारेमें चर्चा करके "मूतिपूजा धर्मका झंडा विश्वमें फिरकाया था। अनादिकालकी है और आत्म कल्याणका एक आजके नूतन युगमें अनेक आचार्य भगवंत परम अवलंबन है" ऐसा सिद्ध कर दिया और और मुनिप्रवर हो गये हैं और विद्यमान भी हैं, वह निरुत्तर होकर चला गया। दूसरे भी जिन्होंने समय पर शास्त्रार्थ करके जैन सिद्धांतकी वेदांतीओं ओर देवद्रव्यके संबंध में बेचरदास रक्षा की है और कर रहे है; उनमें परमपूज्य आदिके साथ सास्त्रार्थ करके जैन सिद्धांतकी शासन प्रभावक सिद्धांत रक्षक जैनरत्न व्याख्यान रक्षा की और शासनका विजय डंका बजाया.॥ वाचस्पती कविकुलकिरीट पूज्यपाद आचार्यदेव आपने न्यायके विषयमें तत्त्वन्याय विभाकर विजय लब्धिसूरीश्वरजी महाराजाका अच्छा स्वोपज्ञ और द्वादशारनयचक्र के टिप्पण आदि स्थान है। स्वतंत्र ग्रंथ बनाये है यह बात आपकी न्याय परमपूज्य पंजाब देशोद्धारक, तार्किक शिरोमणि विषयकी प्रविणता सिद्ध करती है। सत्यमार्गप्ररूपक पूज्यपाद आचार्यदेवेश विजयानंद. आप कवि भी थे इसका प्रत्यक्ष प्रमाण नूतन सूरीश्वरजी (आत्मारामजी) महाराजके पट्टप्रभावक रागमें बनाये हुआ स्तवनादि घर घरमें गुजित परमपूज्यसद्धर्मरक्षक शासनस्थंभ निस्पृह शिरोमणि हो रहे है। पूज्यपाद विजय कमलसूरीश्वरजीके आप पट्टधर थे। वात्सल्य भावका प्रवाह आपके हृदयमें. * आपने २९ वर्षकी लघुवयमें विजय कमल- जोरशोरसे बह रहा था, उस अनुभव मुझे चरम सूरजीके पास दीक्षा लेकर संयम जीवनके साथ भेंटके समय हुआ था। ज्ञानयज्ञका भी जोरशोरसे प्रारंभ कर दिया । आपका स्वर्गगमन वि. सं. २०१७ श्रावण आपकी प्रज्ञा भी तेज थी। द्रव्यानुयोगके शुक्ला पंचमी ब्राह्म मुहुतमें मुम्बापुरीके लालबाग विषयमें आपने काफी परिश्रम उठाया था । के उपाश्रयमें हुआ था। आपने तो संयभी जीवन न्यायके विषयमें भी आपने अच्छी प्रविणता जीकर, शासन प्रभावना करके जीवनको धन्य प्राप्त की थी। इसलीए खुद सूरीश्वरजी और बनाया । मगर संघको इस विषम युगमें मार्ग अन्य मुनि आपको वादीघट मुद्गर के अपर दर्शक ऐसे आपकी खास आवश्यकता थी। नामसे बुलाते थे। मुनिपद अवस्थामें भी इस , " अबतो आपके जीवनसे मुमुक्षु भात्मा मार्गदर्शन पदकी सार्थकता किस प्रकारसे की यह निम्न की प्रेरणा प्राप्त करे यही शुभाभिलाषा। . प्रसंगसे मालुम होता है। वि. सं. १९७२ में भापका चातुर्मास स्थंभनपुर परम शासन प्रभावकको कोटिशः वंदन.
SR No.539217
Book TitleKalyan 1962 01 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1962
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size9 MB
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