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________________ वादि विजेता सूरि दे व श्री पू. पाद पंन्यासजी महाराज श्री रंजनविजयजी गणिवर [पू. पं श्री कनकविजयजी ग. शिष्यरत्न पू. पाद सूरिदेवके वादगुणके परिचय इस लेखमें पू. महाराजश्रीने अपनी लेखिनीसे यहां पर कराया है। सारे विश्वमें जैन शासनका प्रभाव अजीब है, क्योंकि उसकी स्थापना परम करुणाभंडार, वात्सल्य वारिधि, अनंतज्ञानी, वीतराग भगवंत, जिस तरह आत्मशुद्धिके लिये व्रत, दान, अरिहंत परमात्माने की है। आज तक अनंत शील, तपादि अनेक प्रकारकी आराधना करनी आत्माओंने मुक्तिपदकी प्राप्ति की, उसमें मुख्य आवश्यक है, वैसे शासनका रक्षण करना वह कारण जैम शासन है। स्वर्गसुखका अनुभव भी उससेभी अधिक आवश्यक है, क्योंकि शासन जैन शासनकी आराधनासे ही होता है। सब है तो आराधना है। शासनके अलावा आरा- । प्रकारके सुखोंकी प्राप्ति और दुःखोंका नाश धनाकी संभावना नहीं होती है। करनेमें एक जैन शासन ही समर्थ है। जीव- जिस समय कोई अन्यमतावलंबी स्वमतिमात्रका कल्याण मार्ग जैन शासनने बताया है। कल्पनानुसार जैन सिद्धांतका खंडन करता हैं जैन शासनका संचालन और रक्षण करनेमें और जनताको उन्मार्गमें डालता है तब ज्ञानी अरिहंत परमात्मा सदा तत्पर ही होते हैं मगर आपकी मुनि या आचार्य भगवंत अपना ज्ञान द्वारा अविद्यमान दशामें उसका संचालन और रक्षणमें सत्य सिद्धांतकी घोषणा करते हैं और शासन विघ्न न आये इसलिए अंतिम समय पर आप प्रभावनाके साथ जनताको उन्मार्गसे हटाकर । अपने पट्टधर गणधर भगवंतको जैन शासनकी सन्मार्गमें लाते हैं। जवाबदारी सुप्रत कर देते हैं । क्रमशः परंपरागत जैन शासनमें आठ प्रकारके शासन प्रभावक | आचार्यो परं उसकी जवाबदारी आती है। कहलाते हैं। उनमें वादी नामक तीसरे शासन इसलिए शासनका संचालन और रक्षण करना प्रभावक है। खुद महावीर परमात्मा के ४०० यह आचार्याका मुख्य कर्तव्य होता है। वादीओंकी संख्या थी। वृद्ध वादिसूरीश्वरजीने भी
SR No.539217
Book TitleKalyan 1962 01 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1962
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size9 MB
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