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________________ vvvvanviwwways सूरिदेव की साहित्य सेवा श्री अगरचन्दजी नाहटा प्रन्थ उनके विशिष्ट पांडित्य के परिचायक हैं। जन धर्म में पंच-परमेष्ठि का बड़ा महत्व जैन दर्शक के साथ साथ न्याय आदि भनेक है। अरिहन्त और सिद्ध ये दो देव तत्त्व हैं विषयों के आप प्रखर विद्वान थे। आपकी भौर आचार्य, उपाध्याय एवं साधु गुरु तत्त्व हैं। व्याख्यान शैली भी बड़ी आकर्षक थी। मेरे पर सिद्ध तो समस्त कमी से मुक्त होकर मोक्ष में आपकी विशेष कृपा दृष्टि थी परन्तु पुना और बिराजमान हो जाते हैं अतः उनसे तो हम बम्बई में मिलने पर आपने बहुत ही हर्षानुभव प्रेरणा ही ले सकते हैं, सीधा सम्पर्क स्थापित किया। इतने बडे आचार्य का ऐसा धर्म स्नेह नहीं कर सकते क्योंकि देह और वाणीका देखकर मेरा हृदय गद्गद् हो गया। वास्तव में उनके सर्वथा अभाव है। अरिहन्त धर्म प्रवतेक वे एक विरल विभूति थे। होते है पर वे सब समय विद्यमान नहीं रहते आपका शिष्य समुदाय भी विशाल है और इसलिए अपने समय के लोगोंको ही धोपदेश उनमें कई योग्य विद्वान और सच्चारित्र पात्र दे सकते हैं। हां उनकी वाणी से अवश्य दीघ• आचार्य एवं मुनि गण है। उनके द्वारा भी काल तक लाभ उठाया जा सकता है । पर उस यथेष्ट धर्म प्रचार और शासन प्रभावना हुई है। वाणी को सुरक्षित रखने और प्रचारित करने और हो रही है। इस दृष्टि से आचार्य श्री का काम आचार्यों का है इसलिए आचार्यों का बडे पुण्यवान थे कि जिन्हें इतने शिष्यप्रशिष्यों उपकार बहुत ही महान हैं। सार संघ के वे का समुदाय मिला और उनकी सद्प्रवृतियों को नेता होते हैं अतः संघ की सार-सम्हाल उन्हीं चालू रखने और आगे बढ़ाने का सुयोग प्राप्त के द्वारा होती है। उपाध्याय और साधु उन्हीं हो रहा है। के शिष्य और आज्ञानुवर्ती होते हैं। समय आपके रचित ग्रन्थ कई भाषाओं और विषयो समय पर अनेक आचाबोदिने जैन धमे और के हैं उसमें कई विद्वदभोग्य है। तो कई साहित्य को महान् सेवा की है। और वर्तमान जन साधारण के लिए उपयोगी । आपकी काव्य में भी बहुत कुछ शासन सेवा उन्हीं के द्वारा प्रतिभा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। नई हो रही है। आचार्य विजय लब्धिसूरि इस युग राग-रागनियों में आपने बहुत से स्तवन-भजन के ऐसेही एक विशिष्ठ आचार्य थे जिनका स्व. बनाये हैं। और वे इतने लोकप्रिय हुए है कि र्गवास हाल ही में हुआ है। हजारों स्त्रियां व बच्चे तक उन्हें मंदिरों में आचार्य श्री से मेरा कईबार मिलना हुआ गाकर आनन्द विभोर होते हैं। वास्तव में ही है और मैं उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित उनकी कविताने पहत लोकप्रियता प्राप्त की। हआ है। बीकानेर में जब आपका चातुमोस इस तरह हम देखते हैं कि उनकी प्रतिभा हुआ तो व्याख्यान आदि में बराबर मेरा जाना अनेक क्षेत्रों में असाधारण थी और उनकी हुआ करता था। फिर पूना, बम्बई में भी उनके शासन-सेवाएं भी अनेकविध है। गतवर्ष मैं दर्शन का सुअवसर मिला। वे बड़े सरल प्रकृति बम्बई गया तो आप लालबाग के उपाश्रय में थे। के और गुणानुसगी विद्वान थे। उनके अनेक शरीर वहत जीर्ण-शीर्ण हो गया थी पर आत्मअधूरे छोडे हुए कार्यों को पूरा करने में कटि. बल में कभी नहीं थी। ऐसे महान् भाचार्य की बद्ध हांगे, और आपके सदुपदेशों का अनुसरण पवित्र स्मृति में अपनी श्रद्धान्जली व्यक्त करते कर अपना पार्थिव जीवन सफल बनाएंगे। हुए लेखनी को विराम देता हूँ।
SR No.539217
Book TitleKalyan 1962 01 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1962
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size9 MB
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