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________________ महान ज्योतिर्धर आचार्य देवश्री श्री शिखरचंद्रजो कोचर B.A.L L B.-R.JS, एडीशनल जड्ज, उदयपुर. बार यही इच्छा होती थी कि वह आपके कवि-कुल-कीरिट जैनाचार्य श्रीमद्विजय सान्निध्य में अपना समय अधिकाधिक व्यतीत करे। लब्धिसूरीश्वरजी महाराज जैन-समाज के एक आपने अपनी विलक्षण काव्य प्रतिभा द्वारा महान् ज्योतिधर आचार्य थे। जैन श्वेतांबर अनेक सुमधुर गायन एवं भाव-पूर्ण कविताओं भूतिपूजक संप्रदाय के अग्रगण्य आचार्य की रचना की थी, जिनका प्रचार जैन-समाज श्रीमद्विजयानंदसूरिश्वरजी (प्रसिद्ध नाम श्री के घर घर में है। धार्मिक, सामाजिक एवं भात्मारामजी) महाराज के पट्टधर आचार्य श्रीम- शैक्षणिक क्षेत्रों में आपके महान कार्य-कलाप द्विजय कमलसूरीश्रजी महाराज के आप पट्टधर को अलग भी रखदिया जाय, तब भी आप शिष्य थे। अपने ५९ वर्ष के लंबे साधु-जीवन में अपनी भक्तिपूर्ण मंजुल रचनाओं के द्वारा जनता आपने जैन-शासन एवं जनता की जो महान् में सदैव लोक-प्रिय बने रहेंगे। सेवा की, वह चिर स्मरणीय रहेगी। आपके समाज के मार्ग-दर्शन एवं सद्धर्म के प्रचार समस्त कार्य कलापों का यदि वर्णन किया जाय की उत्कट कामना से प्रेरित होकर आपने अनेक तो एक विशाल-ग्रंथ बन जायगा। आपने अनेक विद्वत्ता पूर्ण ग्रंथों की रचना के साथ साथ लोकोपकारी संस्थाओंका निर्माण किया, और पूर्वाचायों द्वारा रचित महान् कृतियों का पुनभनेक मृत-प्राय संस्थाओं में नव-जीवन-संचार रुद्धार एवं प्रकाशन किया, जिसके, कारण समाज किया। लगभग ३७ वर्ष के लंबे आचार्यत्व आपका सदैव ऋणी रहेगा। काल में आपने केवल अपने आज्ञानुवर्ती मुनि बहमखी प्रतिभा, प्रखर पांडित्य एवं उच्चमंडल का ही नहीं, किन्तु समस्त जैन वेतांबर कोटि के व्यक्तित्व के धारक होते हुए भी मूर्तिपूजक समाज का सुचारुरूप से संचालन आप अत्यंत सरल-स्वभाव एवं निरभिमान किया । आपकी सम्मति केवल जन-समाज में व्यक्ति थे। आपके शील-सौजन्य एवं सौहार्दपूर्ण ही नहीं, अपितु जैनेतर समाज में भी महान् व्यवहार के कारण आबाल-वृद्ध आप के सन्निकट मादर से ग्रहण की जाती थी। निस्संकोच आकर अपनी शंकाओं का समाधान जैन-दर्शन एवं साहित्य के उद्भट विद्वान् करते थे। आप सदा जीवन एवं उच्च विचार होने के साथ साथ आप अन्यान्य दर्शनों के भी के मूर्तिमान उदाहरण थे। प्रकांड पंडित थे। आपकी वक्तृत्व शैली अत्यंत बीकानेर-चातुर्मास के समय में मुझे अनेकविद्वत्तापूर्ण, सुललित एवं हृदय-ग्राहिणी थी, बार आचार्यश्री के प्रवचन श्रवण करने तथा जिसके कारण समस्त श्रोत-वर्ग मन्त्र-मुग्ध उनसे वार्तालाप करने का सुअवसर प्राप्त हुआ होजाता था, और आपकी पीयूष-वर्षिणी वाणी था, और उनके सान्निध्य में व्यतीत किया हुआ का रस-पान करने के लिए समस्त वगों के लोग समय मेरे जीवन की बहु मूल्य निधि है। लालायित रहते थे। जो व्यक्ति एकवार भी . आपका विशाल शिष्य समुदाय एवं आपके भापका व्याख्यान श्रवण करता, उस पर आपके अगणित भक्त एवं प्रशंसक आपकी स्मृति में महान व्यक्तित्व, अगाध पंडित्य उच्च विचारों नाना प्रकार के स्मारक बनाएंगे, परंतु आपका की अमिट छाप पड़ती थी, और उसकी बार सच्चा स्मारक तो तभी बनेगा, जब हम आपके
SR No.539217
Book TitleKalyan 1962 01 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1962
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size9 MB
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