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________________ : ९८० परमात्मा प्रतिभि: बनते हैं और कर्मानुसार आत्मा का निर्माण होता है | और क्यों कि प्रत्येक मनुष्य का वातावरण भिन्न होता है अतः उनके कर्म भी भिन्न होंगे व कर्म के भिन्न होने पर आत्मा का भिन्न होना भी स्वतः स्पष्ट है। जिन प्राणियों को शुद्ध वातावरण में रहने का अवसर मिलता है उनकी आत्मा भी उज्ज्वल अवश्य होगी, परन्तु जिन प्राणियों का शरीर गन्दे तथा अश्लील वातावरण में रहता है उनके कर्म सुन्दर आदर्श कभी नहीं बन सकते तो भला उन लोगो की आत्मा जिस पर गन्दा आवरण चढ गया है उसे परमात्मा का स्वरूप कैसा बताया जा सकता है ? उसे दुरात्मा का स्वरूप ही बताया जा सकता है । दुरात्मा स्वयम् तो दुःखदायी कार्य करती है औ दूसरा को दुःखी करने की चेष्टा करती है । कुछ लोगो की धारणा है कि मनुष्य ही परमात्माका पद ग्रहण कर सकता है और कोइ नहीं, क्योंकि (जीव ) आत्मा केवल जानवरों में ही होती है वनस्पति में नहीं । मेरे अनुमान से ऐसा वही लोग कहते हैं जिनका एकपक्षीय ही अध्ययन है । अगर हम आत्मा के गुणों के ध्यान में रखकर वनस्पति का अध्ययन करें तो स्पष्ट हो जाता है की जिस प्रकार मनुष्य पंचे न्द्रियों के द्वारा स्वाद, शब्द, दृश्य, गन्ध एवम् तापादि का अनुभव करता है उसी प्रकार वनस्पति एकेन्द्रय जीव होते हुए भी पंचेन्द्रिय के विषय को ज्ञान प्राप्त करते हुए जान पडते है । इन एकेन्द्रिय जीवों में बाह्य इन्द्रिये तो एक ही होती है परन्तु भावेन्द्रियो तो वे पांचों होती है जो मनुष्य आदि जीवों में होती है । वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञों (Batanists) ने तो यह प्रमाणित करके दिखा दिया की यद्यपि जानवर और वनस्पति वर्ग को देखने से अत्यंत भिन्नता दिखती है परन्तु फिर भी इन दोनों में वे गुणसमान रूप से पाये जाते है जिनके होने पर आत्मा का होना निश्चित किया जाता है । उदाहरण के लिये जात दशा, राग-प्रेम, हर्ष, शोक, लाभ, लज्जा, भय, माया, मैथुन, आहार, जन्म, वृद्धि, मृत्यु, राग, औघ, संज्ञा आदि का अनुभव इन्हें भी मनुष्य एवम् अन्य जानवरों की भांति होती हैं । बाल्य, यौवन, वृद्धावस्था ये तीनो अवस्था भी इन जीवों में मनुष्य की भांति होती है । जिस प्रकार हमारी आयु निश्चित होती है । उसी प्रकार वनस्पतिकाय जीवों की भी आयु निश्चित होती है जिसके समाप्त हो जाने पर जिस प्रकार मनुष्य आदि जीव मर जाते हैं ये भी समाप्त हो जाते हैं । भ्रमर गत जन्म के कारण वनस्पतिकाय जीवों मे कुशलता इस प्रकार होती है जिस प्रकार पक्षियों में सुधरी नामका पक्षी घौसला बनाने में कुशल होता है, ते।ता मैना, कोयल आदि जिस प्रकार मधुर शब्द बोलने में कुशल होते हैं, मीट्टी का घर बनाने में कुशल होता है वैसा कोई नहीं होता । वनस्पति जीवों में दूसरे एकेन्द्रिय जीवों का अपेक्षा विषय ग्रहण करने की शक्ति धारण करने में आश्चर्यजनक कुशलता रखते हैं । (१) शब्द ग्रहण करने की शक्ति:- कंदल जौर कुंडल आदि बनस्पतियां मेघ गर्जन से पल्लवित होती है । (२) रुप ग्रहण करने की शक्ति :- लताएँ,
SR No.539180
Book TitleKalyan 1958 12 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1958
Total Pages56
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size13 MB
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