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________________ आत्मा परमात्मा का प्रतिबिंब है श्री मंगलचन्द्र एस. सिंघी -सिरोही. पूर्व परिचयः स्पष्ट है कि आत्मा एक अहः लिये मुक्त हो जाती है, जिसे हम इश्वर कहते श्य शक्ति है और इस शक्ति पर अनेक विद्वा. है । आत्मा परमात्मा का प्रतिबिम्ब है यह उसी नोने अपने अनेक मत प्रगट किये है। आत्मा क्षेत्र में सत्य होता है जहां आत्मा अरिहन्त अरूपी (निराकार) अमर अछेद्य व अभेद्य हैं। अवस्था में होती है दूसरे किसी क्षेत्र में नहीं, शास्त्रकारों ने भी परमात्मा का स्वरूप अरूपी, अरिहन्त पद तक पहुंचने के पश्चात् ही आत्मा, अमर, अछेद्य व अभेद्य बताया है,। स्पष्ट है, ईश्वर, सिद्ध, परमात्मा का स्थान ग्रहण कर आत्मा परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। ... सकती है। अतः प्रत्येक जीवात्मा का परमा जब हम यह कहते है कि आत्मा परमात्मा त्मा का प्रतिबिम्ब बता देना, प्रत्येक पीली धातु का प्रतिबिम्ब है तो एक प्रश्न उपस्थित हो का स्वर्ण बता देने के तुल्य होगा । “All - जाता है कि क्या प्रत्येक प्राणी की आत्मा पर. the glitter is gold" (instead of मात्मा है अथवा नहीं ? प्रत्येक प्राणी की आत्मा all thy glitter is not gold) यह कथन को परमात्मा का स्थान नहीं दीया जा सकता। कहां तक युक्तिसंगत है पाठक स्वयं अनुमान क्यु की जैसा कि आगे लिखा गया है परमात्मा लगा सकते है। आत्मा का शुद्ध स्वरूप है और शुद्ध का अर्थ "आत्मा एक खाली कमरे का भांति है जिसे : वास्तविक मुक्ति से है, ततः यह निश्चित रूप कर्म शरीर द्वारा सजाता है कर्म का जैसा वातासे नहीं कहा जा सकता कि प्रत्येक जीव की वरण मिलेगा वही आत्मा का रूप होगा ।” कर्म आत्मा शुद्ध ही हो और फिर जहां आत्मा और वातावरण में रहकर बनते है. ओर शरीर वातापरमात्मा का सम्बन्ध है, आत्मा जन्म से मुक्त . वरण में भ्रमण करता है अतः हम भी कह होने पर ही परमात्म पद (Place of god.) .सकते है कि आत्मा का रूप वातावरण के अनुग्रहण कर सकती है. अतः इस लोक में भ्रमण सार होता है । प्रमाण के लिये दो तुरंत जन्में करने वाली प्रत्येक जीवात्मा को परमात्मा का हुए बालको का लो, एक बालक को शिक्षित प्रतिबिम्ब नहीं कहा जा सकता। एवम् स्वस्थ वातावरण में रखकर पालो व दूसरे जैन दर्शन के कर्मवाद के अनुसार भी यह को अशिक्षित व गन्दे वातावरण में पालन पोषण पूर्ण सत्य है कि आत्मा जन्म-जन्मान्तर स्ने मुक्त करो । उनके कुछ बड़े होने पर आप देखेंगें होने पर ही सिद्ध रूप (god) ग्रहण करती है। कि सामान्यतः बालक रहे हुए वातावरण के आत्म के शरीर धारण करनेका कारण यह है अनुसार कार्य करते है। अनेक विद्वानो ने कि उसे अभी कर्म भोगना शेष है, सर्व कमों अनेक प्रयोगो के द्वारा प्रमाणित किया कि प्राणी के नाश हो जाने पर ही वह इसको सदा के का चरित्र वातावरण के अनुसार बनता है। कहने का आशय यह है कि कर्म वातावरण में
SR No.539180
Book TitleKalyan 1958 12 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1958
Total Pages56
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size13 MB
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