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________________ • आत्मा: परमात्माका प्रतिबिंब हैं! . श्री मंगलचन्द्र एस. सिंधी. सिरोही. परमात्मा क्या है ? इस विषय पर अलग गुणो से सुशोभित होकर पुनः जन्म से मुक्त अलग विद्वानो के अलग २ मत है। कुछ लोग हो जाती है तथा प्राणियों के लिये वास्तविक परमात्मा को एक असी शक्ति बताते है जो सुखो का साधन बनकर मुक्ति मार्ग पर ले जाने अनादि अनन्त हैं. जिसका न तो जन्म होता है की प्रेरक हो जाती है तो उस आत्मा को महान और न मृत्यु ही. यह अजर अमर है सर्वव्यापक आत्मा कहते है (यहां पर महान परम शब्द है। कुछ लोग परमात्मा का घर (वास) स्वर्ग का द्योतक है) इस प्रकार आत्मा का शुद्ध रुप मोक्ष बताते हैं. अतः वह प्रत्येक को दिखाई ही परमात्मा है। परमात्मा एक नही वरन् अनंत नही दे सकता अगर कोई परमात्मा का दर्शन है तथा प्रत्येक जीवात्मा, परमात्मा का स्थान करना चाहता है तो उसे अपनी पापेन्द्रियो पर ग्रहण कर सकता है। विजय प्राप्त कर मुक्ति मार्ग पर खोजकर उसके जब हम कहते है कि परमात्मा आत्मा की अनुसार चलना होगा। कुछ लोग जो (ईश्वर) शुद्ध स्वरुप है तो हमारे सामने एक प्रश्न परमात्मामें विश्वास नहीं करते उनका कहना है उपस्थित हो जाता है कि आत्मा क्या है ? और कि परमात्मा केवल एक भ्रम हैं, जिसका न आत्मा शद्ध कैसे बनती है? अतः परमात्मा को तो कोई आकार है और न उसके होने का जानने के हेतु आत्माका अध्ययन करना होगा। काई प्रमाण अतः. जिसका कोइ आकार ही संसार के जितने भी पदार्थ हमारे समक्ष नहीं उसका चिंतन करना केवल कल्पना नही आते है उन सबको हम दो भागोमें विभाजित तो और क्या ? क्यु कि वैज्ञानिक युग में कर सकते है। एक तो बे पदार्थ जिनकी स्थिति कल्पना का कोई स्थान नहि. अतः ईश्वर जिसका सदा एकसी बनी रहती है और उनसें कोई काई आकार ही नही उसकी व्याख्या करना, परिवर्तन नही होता जड कहलाते है, दुसरे वे चिज बताना केवल मूर्ख कलाकार का काये हैं। पदार्थ जिनकी स्थिति समयानुसार स्वतः बदलती कुछ लोग परिवर्तनशील विश्वमें घटने वाली रहती है तथा घटती बढती रहती है चेतन सभी घटनाओंका कारण परमात्मा ही बताते कहलाते है। इस प्रकार समस्त पदार्थो की हैं। उनके मतानुसार स्वयं प्राणी कुछ नही अवस्था के अनुसार जड तथा चेतन नामक दो कर सकता. प्राणी सभी कार्य ईश्वरीय आदेश में भागों बांट सकते है। क्रिया के होने न होने करता है । अधिक विस्तार में न लिखकर अगर का सम्बन्ध एक विशेष शक्ति से है जिसे यह कह दिया जाय कि परमात्मा के विषय में चेतनत्व कहते है चेतनत्व का दूसरा नाम ही उतने ही मत है जितने विचारक. तो भी कोई आत्मा है। अत्युक्ति नहीं होगी। संसार में न तो जड पदार्थ अकेले रह ऐसी हालत में जब परमात्मा के बारे में सकते है और न चेतन ही। जड में चेतनत्व अनेक मत है तो वास्तविक को जानने के लिये की उपस्थिति में ही क्रिया होना सम्भव है। परमात्मा के विषय को वैज्ञानिक तथ्यों को जड एक दृश्यमान पदार्थ है और चेतन अदृश्यमध्य नजर रखते हुए अध्ययन करना होगा। मान. इस अध्ययन के द्वारा पहिचाना जा सकता जैसा कि मूल शब्द "परमात्मा" से प्रतीत है देखा नही जा सकता। प्राणिका शरीर जीव होता है परमात्मा शब्द परम अवम् आत्मा शब्दो वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार एक पदार्थ है. क्या के योग से बना है। अर्थात् आत्मा जब सभी यह पूर्व एक है और स्वतः ही क्रिया करता है ? प्रकार के अवगुण-पापो से मुक्त होकर तथा अनंत अगर वास्तव में यही सत्य है तो सन्देहात्मक
SR No.539171
Book TitleKalyan 1958 03 04 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1958
Total Pages110
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size16 MB
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