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________________ २१५ કલ્યાણ : स्तवन २२ क्षमा छत्तीसी २३ सप्तोपधान स्तवन एवं स्तवन सशायादि लघु कृतियें विभिन्न पुस्तक प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित है। अब आपका संक्षिप्त परिचय देकर उल्लेखनीय ग्रन्थों की सूची दी जाती है जिससे पाठकों को आपके महान् पाण्डित्य एवं कवित्व का भलीभांति परिचय हो जायगा। परिचय-सम्राट अकबर प्रतिबोधक युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरिजीके प्रथम शिष्य श्री सकलचंद्रगणिके आप शिष्य थे। आपका जन्म साचौर के पोरवाड़ वंश में साह रूपसी की भार्या लीलादेवी की कूक्षी से हुआ था। आपने लघुवयमें दीक्षा लेकर वा० महिमराजजी और वा० समयराजजीके पास विद्याध्ययन किया और अपनी असाधारण प्रतिभासे बहुत ख्याति प्राप्त की सं. १६४९ में अष्टलक्षी (राजानो ददते सौख्यम् इन ८ अक्षरोंवाले वाक्य के १० लाख से ऊपर अर्थ करके) ग्रन्थ बना कर लाहौरमें सम्राट अकबर की विद्वत् परिषदमें सुनाया, जिससे सम्राट्ने प्रभावित हो कर भूरि सूरि प्रशंसा करते हुए अपने हाथ से कविवर [ पद ] को समर्पित किया। श्री जिनचंद्रसूरिजीने वह फा० सु २ को वाचनाचार्य पदसे अलंकृत किया। आपने सिन्धु देशमें विहार कर मखनूत शेख को प्रतिबोध देकर पंच नदी के जलचर जीवों एवं विशेषतया गायों की रक्षा करवाई । जेसलमेर के महारावल भीमजी को उपदेश देकर मीनों से मारते हुए सांडा जीवों को छुड़वाया। मण्डोवर वर व मेड़ताके अधिपति को रंजित करके शासन की शोभा बढाई। सं०.
SR No.539014
Book TitleKalyan 1945 Ank 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomchand D Shah
PublisherKalyan Prakashan Mandir
Publication Year1945
Total Pages148
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Kalyan, & India
File Size9 MB
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