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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
पुस्तक-समीक्षा
"श्रुताराधक" प्रधान संपादक- डॉ. जयकुमार जैन, मुजफ्फरनगर, संपादक 'अनेकान्त' त्रैमासिकी शोध पत्रिका, प्रबन्ध संपादक- पं. विनोदकुमार
जैन, रजवाँस, प्रो. विजयकुमार जैन लखनऊ। लोकार्पण प्रसंग-परमपूज्य जागृतिकारी संत उपाध्याय श्री 108 नयनसागर जी महाराज (प्रेरणास्रोत) एवं सान्निध्य-बनाना ट्री होटल, साहिबाबाद (गाजियाबाद उ.प्र.) प्रथम संस्करण- 2015 अक्टूबर, प्रतियाँ-1000, मूल्य : रु.1000/-, आर्ट पेपर पर- कलरफुल साफ-सुथरी प्रिटिंग- पृष्ठ संख्या-624, प्रकाशकडॉ. श्रेयांसकुमार जैन अभिनंदन ग्रंथ समिति। प्राप्ति स्थान- एलन कॉपर रेडीमेड गारमेंटस, बड़ौत, जिला-बागपत (उ.प्र.) 09759665656.
पाँच उन्मेषों (खण्डों) में विभाजित-प्रथम उन्मेष- शुभाशीर्वाद, शुभकामनाएँ एवं संस्मरण- लगभग 54 परमपूज्य आचार्यों, मुनिराजों एवं आर्यिकाओं के आशीर्वाद, 250 जैन मनीषियों/विदुषियों की शुभकामनाएँ, द्वितीय खण्ड- आत्मकथ्य एवं व्यक्तित्व, तृतीय खण्ड- रचना धार्मिता के साथ मौलिक चिन्तन-51, आलेखों का संचयन, चतुर्थ खण्ड- चित्र रश्मि-संचयन (76 पृष्ठों में लगभ चित्र-231) पंचम उन्मेष- जैन विद्या के विविध आयाम एवं साहित्य-समीक्षा- 24 विद्वानों के विभिन्न जैन आगम, संस्कृति, श्रावकाचार आदि पर विशिष्ट लेख श्रुयते श्रोत्रेन्द्रियेण वा गृह्यते इति श्रुतः' प्रधान सम्पादक के इस मूल मंत्र वाक्य से अभिनन्दनीय का गुणानुवाद, एक सकारात्मक/सशक्त उपक्रम बतलाते हुए 'श्रुताराधक' के मूल्यांकन की प्रेरणास्पद संस्तुति है। प्रत्येक आचार्यो/उपाध्यायों/मुनिराजों/ आयिकारत्नों के सचित्र- मंगल आशीर्वाद से श्रुताराधक ग्रन्थ का मंगलाचरण-अभिनव है। सम्पूर्ण ग्रन्थ- उपयोगी, ज्ञज्ञनसम्वाहक एवं संग्रहणीय है। शोधकर्ताओं के लिए भी पर्याप्त सामग्री का संग्रह है, अस्तु शोध- संदर्भ ग्रन्थ है। प्रिटिंग स्वच्छ निर्दोष है जिसे अरिहंत ग्राफिक्स दिल्ली ने छापा है।