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________________ अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 नैतिक-बोधकथा अहंकार की भूँख - 91 प्रस्तुति : श्रीमती महिमा जैन (एम.एस. सी. एम. म्यूज. ) अहंकार मनुष्य की तृष्णा की भूख का विस्तार है। आदमी जब अहंकार के पैमाने से, दूसरों को नापने की कोशिश करता है, तो उसे सब छोटे दिखने लगते हैं। - दूसरे पर विजय पाने के ताने-बाने, अहंकार से बुने हुए होते हैं, व्यक्ति के बाहर का विस्तार और अधिपत्य की कामना, "मैं" का विस्तार है। • जो नैसर्गिक हो रहा है, उसमें भी वह अपने कर्तत्व को जोड़ देता है। सिकन्दर की सेना विस्तार, वस्तुतः उसके अहंकार का विस्तार था। वह सारे विश्व को जीत लेने का सपना लेकर घर से निकला था। सेना ने जहाँ जहाँ कूच किया वहाँ की धन दौलत को लूटा तथा उस देश की अस्मिता और संस्कृति को भी बरबाद करने से नहीं चूका । एक नगर पर उसने चढ़ाई की और विजय का नगाड़ा बजाता हुआ वहाँ अफरा-तफरी मचाने लगा। लोगों की पीड़ा व संत्रास के स्वर, राजसत्ता के नक्कार खाने में दबकर रह गए। सिकन्दर भूख से व्याकुल हो रहा था। वह थक भी गया था। घोड़े से उतरा और एक घर के सामने घोड़े को खड़ा कर दिया। घर का दरवाजा खटखटाया, लेकिन भीतर से कोई दरवाजा खोलने नहीं आया। वह अधीर हो रहा था। पेट की भूख से उसका धैर्य टूट जा रहा था। इस बार उसने जोर से कुण्डी खटखटायी थोड़ी देर बाद एक वृद्धा दरवाजा खोला और सिकन्दर के सामने खड़ी हो गयी। वह सिकन्दर को सम्भवतः पहिचान गयी । "माँ ! मुझे जोर की भूख लगी है, जल्दी से खाना दो" - घुड़सवार ने कहा । वृद्धा ने आगन्तुक को बड़े विश्वास के साथ देखा और भीतर चली गयी। जब पुन: लौटी तो उसके काँपते हाथों में, एक रेशमी कपड़े
SR No.538069
Book TitleAnekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2016
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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