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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
स्थायी स्तम्भ- 'युगवीर-गुणाख्यान'-३
भगवान महावीर का सर्वोदयतीर्थ
दूसरी शताब्दी के महान् आचार्य स्वामी समन्तभद्र ने अपने युक्त्यनुशासन' ग्रन्थ में समस्त तीर्थ प्रर्वतकों (आप्त) की परीक्षा करके भगवान महावीर को सत्यार्थ आप्त के रूप में निश्चित करके उनकी स्तुति में महावीर के अनेकान्तात्मक शासन को 'सर्वोदय तीर्थ' बतलाया। कारिका निम्नांकित है :
सर्वान्तवत्तद्गुण-मुख्य कल्पं सर्वान्त-शून्यं च मिथोऽनपेक्षम् सर्वापामन्तकरं निरन्तं, सर्वोदय तीर्थमिदं तवैव॥६१॥
इस प्रकार आ. समन्तभद्र ने 'सर्वोदय' शब्द की सर्वप्रथम उद्घोषणा कर भ.महावीर के शासन को प्राणियों के अभ्युदय का कारण तथा आत्मा के पूर्ण अभ्युदय (विकास) का साधक कहा है। | अनेकान्त के नये वर्ष के प्रथमांक 69/1 में 'महावीर के सर्वोदयतीर्थं के सम्बन्ध में पण्डित आचार्य जुगलकिशोर 'मुख्तार' का सारगर्भित चिन्तन, संक्षिप्तीकरण के साथ संपादित करके 'युगवीरगुणाख्यान' की इस तीसरी किस्त में दे रहे हैं। अगले माह अप्रैल 2016 में महावीर जयंती है अस्तु अपने युग के क्रान्ति-दृष्टा पं. मुख्तार साहब के परम्परा की लीक से हटके ये विचार-प्रासंगिक एवं भ. महावीर की सार्वभौमिकता के पक्षधर हैं। "जैनधर्म विश्वधर्म है" का नारा तभी सार्थकता के पायदान पर खड़ा हो सकता है।
प्रस्तुतकर्ता- पं. निहालचंद जैन, निदेशक वीरसेवामंदिर
'सर्वोदयतीर्थ' यह पद सर्व, उदय और तीर्थ इन तीन शब्दों से मिलकर बना है। 'सर्व' शब्द सब तथा पूर्ण का वाचक है; 'उदय' ऊँचे-ऊपर उठने, उत्कर्ष प्राप्त करने, प्रकट होने अथवा विकास को कहते हैं; और 'तीर्थ' उसका नाम है जिसके निमित्त से संसार महासागर को तिरा जाय। वह तीर्थ वास्तव में धर्मतीर्थ है जिसका सम्बन्ध जीवात्मा से है,